An-Nisaa (अन-निसा)
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بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ
الرَّحِیۡمِ
शुरू
अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है,
बहुत
मेहरबान है। (0)
In the name
of Allah, the Most Gracious, the Most Merciful. (0)
ऐ लोगो! अपने परवर्दिगार से डरो जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी से उसकी बीवी पैदा की, और उन दोनों से बहुत से मर्द और ओरते (दुनिया में) फैला दिये और अल्लाह से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक दूसरे से अपने हुक़ूक़ माँगते हो, और रिश्तेदारियों (की हक़-तल्फ़ी से) डरो। यक़ीन रखो कि अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है। (1)
O people!
Fear your Lord who created you from a single soul and from it created his wife, and
from them spread many men and women (in the world). And fear Allah in whose
name you demand your rights from each other, and
beware of kinship. Be sure that Allah is watching over you. (1)
और यतीमों को उनके माल दे दो, और अच्छे माल को ख़राब माल से तब्दील न करो, और उन (यतीमों) का माल अपने माल के साथ मिलाकर मत खाओ। बेशक यह बड़ा गुनाह है। (2)
And give to
the orphans their property, and do not exchange good property for bad, and do not consume their property by mixing it with your own. Surely this is a
great sin. (2)
और अगर तुम्हें यह अन्देशा (डर और आशंका) हो कि तुम यतीमों के बारे में इन्साफ़ से काम नहीं ले सकोगे तो (उनसे निकाह करने के बजाय) दूसरी ओरतों में से किसी से निकाह कर लो जो तुम्हें पसन्द आयें, दो-दो से, तीन-तीन से और चार-चार से। हाँ! अगर तुम्हें यह ख़तरा हो कि तुम (उन बीवियों) के दरमियान इन्साफ़ न कर सकोगे तो फिर एक ही बीवी पर इक्तिफ़ा करो, या उन कनीज़ों (बाँदियों) पर जो तुम्हारी मिल्कियत में हैं इस तरीक़े में इस बात की ज़्यादा संभावना है कि तुम बेइन्साफ़ी में मुब्तला नहीं होगे। (3)
And if you fear that you will not be able to do justice with the orphans, then marry any of the other women whom you like, two, three or four. Yes! If you fear that you will not be able to do justice between them, then stick to one wife or the slave girls who are in your possession, in this way it is more likely that you will not be involved in injustice. (3)
और ओरतों को उनके मेहर ख़ुशी से दिया करो। हाँ! अगर वे ख़ुद उसका कुछ हिस्सा दिल की ख़ुशी से छोड़ दें तो उसे अच्छा और उम्दा समझो और मजे़ से खा लो। (4)
And give
women their dowry happily. Yes! If they themselves leave some part of it
happily, then consider it good and excellent and eat it happily. (4)
और ना-समझ (यतीमों) को अपने माल हवाले न करो जिनको अल्लाह ने तुम्हारे लिये ज़िन्दगी का सरमाया बनाया है, हाँ उनको उनमें से खिलाओ और पहनाओ, और उनसे मुनासिब अन्दाज़ में बात कर लो। (5)
And do not
entrust your wealth to the foolish (orphans), whom Allah has made the means of
sustenance for you; but feed them and clothe them from it and speak to them in a polite manner. (5)
आर यतीमौं को जांचते रहो, यहां तक कि जब व निकाह के क़ाबिल उमर को पहोंच जायें तो अगर तुम यह महसूस करो कि उनमें समझदारी आ चुकी है तो उनके माल उन्हीं के हवाले कर दो। और यह माल फ़ुज़ूलख़र्ची करके और यह सोचकर जल्दी-जल्दी न खा बैठो कि वे कहीं बड़े न हो जायें। और (यतीमों के सरपरस्तों में से) जो ख़ुद मालदार हो वह तो अपने आप को (यतीम का माल खाने से) बिल्कुल पाक रखे। हाँ अगर वह ख़ुद मोहताज हो तो समाजी दस्तूर और क़ायदे के मुताबिक़ खा ले। (6) फिर जब तुम उनके माल उन्हें दो तो उन पर गवाह बना लो। और अल्लाह हिसाब लेने के लिये काफ़ी है। (6)
मर्दों के लिये भी उस माल में हिस्सा है जो माँ-बाप और क़रीब के रिश्तेदारों ने छोड़ा हो, और ओरतों के लिये भी उस माल में हिस्सा है जो माँ-बाप और क़रीब के रिश्तेदारों ने छोड़ा हो, चाहे वह (तर्का यानी छोड़ा हुआ माल) थोड़ा हो या ज़्यादा, यह हिस्सा (अल्लाह की तरफ़ से) मुक़र्रर है। (7)
Men have a
share in the property left by their parents and their close relatives, and
women have a share in the property left by their parents and their close
relatives, whether it is small or large, this
share is determined (by Allah). (7)
और जब (मीरास की) तक़सीम के वक़्त (ग़ैर-वारिस) रिश्तेदार, यतीम और मिस्कीन लोग आ जायें तो उनको भी उसमें से कुछ दे दो, और उनसे अच्छे और बेहतर अन्दाज़ में बात करो। (8)
orphans and the needy come at the time of division, give them some of
it and speak to them in a good and polite manner. (8)
और वे लोग (यतीमों के माल में खुर्दबुर्द करने से) डरें जो अगर अपने पीछे कमज़ोर बच्चे छोड़कर जायें तो उनकी तरफ़ से चिंतित रहेंगे। लिहाज़ा वह अल्लाह से डरें और सीधी-सीधी बात कहा करें। (9)
And those
who leave behind weak children should be afraid (of spoiling the property of
orphans) who will be worried about them. So, they should fear Allah and speak
what is right. (9)
यक़ीन रखो कि जो लोग यतीमों का माल नाहक़ खाते हैं वे अपने पेट में आग भर रहे हैं, और उन्हें जल्द ही एक दहक़ती आग में दाख़िल होना होगा। (10)
Be assured that those who eat the property of orphans
without any reason are filling their bellies with fire, and they will soon have to enter a blazing Fire. (10)
अल्लाह तुम्हारी औलाद के बारे में तुमको हुक़्म देता है कि मर्द का हिस्सा दो ओरतों के बराबर है (10) और अगर (सिर्फ़) ओरते ही हों, दो या दो से ज़्यादा, तो मरने वाले ने जो कुछ छोड़ा हो उन्हें उसका दो तिहाई हिस्सा मिलेगा और अगर सिर्फ़ एक ओरत हो तो उसे (तर्के का) आधा हिस्सा मिलेगा। और मरने वाले के माँ-बाप में से हर एक को तर्के (छोड़े हुए माल) का छठा हिस्सा मिलेगा, बशर्तेकि मरने वाले की कोई औलाद हो, और अगर उसकी कोई औलाद न हो और उसके माँ-बाप ही उसके वारिस हों तो उसकी माँ तिहाई हिस्से की हक़दार है। हाँ अगर उसके कई भाई हों तो उसकी माँ को छठा हिस्सा दिया जायेगा, (और यह सारी तक़सीम) उस वसीयत पर अ़मल करने के बाद होगी जो मरने वाले ने की हो, या अगर उसके ज़िम्मे कोई क़र्ज़ है तो उसकी अदायगी के बाद (11) तुम्हें इस बात का ठीक-ठीक इल्म नहीं है कि तुम्हारे बाप-बेटों में से कौन फ़ायदा पहुँचाने के लिहाज़ से तुमसे ज़्यादा क़रीब है यह तो अल्लाह के मुक़र्रर किये हुए हिस्से हैं, (12) यक़ीन रखो कि अल्लाह इल्म का भी मालिक है, हिक्मत का भी मालिक। (11)
Allah commands you with regard to your children: the
share of a man is equal to that of two women, (10) And if there are only women, two or more, they will inherit two-thirds of whatever
the deceased leaves behind. And if there is only one woman, she will inherit
one-half of it. And the parents of the deceased will each inherit one-sixth of
the inheritance, provided the deceased has children. If he has no children and his parents are
his heirs, his mother is entitled to a third of it. Yes, if he has many brothers,
then his mother will be given one-sixth of the share. (And all this division will be done) after the
execution of the will made by the deceased, or if he has any debt, then after its payment. (11) You do not know exactly which of your
fathers and sons is closer to you in terms of benefit. These are the shares
determined by Allah. (12) Have faith that Allah is the Lord of
knowledge and also of wisdom. (11)
और तुम्हारी बीवियाँ जो कुछ छोड़कर जायें उसका आधा हिस्सा तुम्हारा है, बशर्तेकि उनकी कोई औलाद (ज़िन्दा) न हो। और अगर उनकी कोई औलाद हो तो उस वसीयत पर अ़मल करने के बाद जो उन्होंने की हो, और उनके क़र्ज़ की अदायगी के बाद तुम्हें उनके तर्के का चौथाई हिस्सा मिलेगा। और तुम जो कुछ छोड़कर जाओ उसका एक चौथाई उन (बीवियों) का है, बशर्तेकि तुम्हारी कोई औलाद (ज़िन्दा) न हो। और अगर तुम्हारी कोई औलाद हो तो उस वसीयत पर अ़मल करने के बाद जो तुमने की हो, और तुम्हारे क़र्ज़ की अदायगी के बाद उनको तुम्हारे तर्के (छोड़े हुए माल) का आठवाँ हिस्सा मिलेगा। और अगर वह मर्द या औरतों जिसकी मीरास तक़सीम होनी है, ऐसा हो कि न उसके माँ-बाप ज़िन्दा हों न औलाद, और उसका एक भाई या एक बहन ज़िन्दा हो तो उनमें से हर एक छठे हिस्से का हक़दार है। और अगर वे इससे ज़्यादा हों तो वे सब एक तिहाई में शरीक होंगे, (मगर) जो वसीयत की गई हो उस पर अ़मल करने के बाद और मरने वाले के ज़िम्मे जो क़र्ज़ हो उसकी अदायगी के बाद, बशर्तेकि (वसीयत या क़र्ज़ के इक़रार करने से) उसने किसी को नुक़सान न पहुँचाया हो। (13) यह सब कुछ अल्लाह का हुक्म है, और अल्लाह हर बात का इल्म रखने वाला, बुर्दबार है। (12)
And half of whatever your wives leave behind is yours, provided they have no children. And if they have children, after the
execution of their will and after the payment of their debts, you will get a fourth of their inheritance. And one fourth of whatever you
leave behind is theirs, provided you have no children. And if you
have children, after the execution of your will and after the payment of your
debts, they will get an eighth of your
inheritance. And if the man or woman whose inheritance is to be divided is neither his parents nor children, and if he has one brother or one sister alive, then each of them is
entitled to a sixth part. And if they are more than that, then all of them will
share in one-third , ( but) after the execution of the will and
after the payment of the debt of the deceased , provided he did not harm anyone (by making the will or acknowledging the
debt). (13) All this is the command of Allah, and Allah is All-Knowing, All-Forgiving. (12)
ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं, और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल की इताअ़त करेगा (यानी हुक्म मानेगा), वह उसको ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, ऐसे लोग हमेशा उन (बाग़ों) में रहेंगे, और यह ज़बरदस्त कामयाबी है। (13)
These are the limits set by Allah, and whoever obeys Allah and His messenger, He will admit him into gardens beneath which rivers flow, such people will abide in them forever, and this is a great success. (13)
और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी करेगा और उसकी मुक़र्रर की हुई हदों से निकलेगा उसे अल्लाह दोज़ख़ में दाख़िल करेगा, जिसमें वह हमेशा रहेगा और उसको ऐसा अ़ज़ाब होगा जो ज़लील करके रख देगा। (14)
And whoever disobeys Allah and His Messenger and crosses
the limits set by Him, Allah will admit him into Hell, wherein he will abide forever and he will have a punishment that will
humiliate him. (14)
तुम्हारी औरतों में से जो बदकारी का काम और जुर्म करें, उन पर अपने में से चार गवाह बना लो। चुनाँचे अगर वे (उनकी बदकारी की) गवाही दें तो उन औरतों को घरों में रोक कर रखो यहाँ तक कि उन्हें मौत उठाकर ले जाये, या अल्लाह उनके लिये कोई और रास्ता पैदा कर दे। (15)
your women commit adultery or sin, take four witnesses from among yourselves against them. So, if they testify (of their adultery), then keep those women confined in their houses until death takes them away, or Allah makes another way for them. (15)
और तुम में से जो दो मर्द बदकारी का जुर्म और काम करें उनको सज़ा और तकलीफ़ दो। (15) फिर अगर वे तौबा करके अपनी इस्लाह (सुधार) कर लें तो उनसे दरगुज़र (माफ़) करो। बेशक अल्लाह बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला, बड़ा मेहरबान है। (16)
And if any two men among you commit adultery, punish them
and punish them. (15) Then if they repent and reform themselves, forgive them. Surely Allah is
Most Forgiving and Most Merciful. (16)
अल्लाह ने तौबा क़ुबूल करने की जो ज़िम्मेदारी ली है वह उन लोगों के लिये है जो नादानी से कोई बुराई कर डालते हैं, फिर जल्दी ही तौबा कर लेते हैं। चुनाँचे अल्लाह उनकी तौबा क़ुबूल कर लेता है, और अल्लाह हर बात को ख़ूब जानने वाला भी है, हिक्मत वाला भी। (17)
The responsibility of accepting repentance is for those
who commit a sin out of ignorance and then repent soon. Therefore, Allah accepts their repentance. And Allah is All-Knowing and All-Wise. (17)
तौबा की क़ुबूलियत उनके लिये नहीं जो बुरे काम (बराबर) किये जाते हैं यहाँ तक कि जब उनमें से किसी पर मौत का वक़्त आ खड़ा हो जाता है तो वह कहता है कि मैंने अब तौबा कर ली है, और न उनके लिये है जो कुफ़्र ही की हालत में मर जाते हैं। ऐसे लोगों के लिये तो हमने दुख देने वाला अ़ज़ाब तैयार कर रखा है। (18)
Repentance is not accepted for those who keep on doing
evil deeds until the time of death comes upon one of them and he says, "I have now repented." Nor is it accepted for those who die in the
state of disbelief. For such people, we have prepared a painful punishment. (18)
ऐ ईमान वालो! यह बात तुम्हारे लिये हलाल नहीं है कि तुम ज़बरदस्ती औरतों के मालिक बन बैठो, और उनको इस उद्देश्य से बन्दी बना लो कि तुमने जो कुछ उनको दिया है उसका कुछ हिस्सा ले उड़ो, हाँ मगर यह कि वे खुली बेहयाई का काम करें। (16) और उनके साथ भले अन्दाज़ में ज़िन्दगी बसर करो, और अगर तुम उन्हें पसन्द न करते हो तो यह ऐन मुम्किन है कि तुम किसी चीज़ को नापसन्द करते हो और अल्लाह ने उसमें बहुत कुछ भलाई रख दी हो। (19)
O you who believe! It is not lawful for you to become the
masters of women by force, and to make them captives with the
intention of taking away part of what you have given them, except that they do things which are openly obscene. (16) And live with them in a good manner, and if you do not like them then it is quite possible that you dislike
something and Allah has put a lot of good in it. (19)
और आख़िर कार तुम कैसे (वह मेहर) वापस ले सकते हो जबकि तुम एक दूसरे के इतने क़रीब हो चुके थे, और उन्होंने तुम से बड़ा भारी अ़हद लिया था। (21)
And how can you take back (the dowry) when you were so
close to each other, and they had taken a heavy pledge from you?
(21)
और जिन औरतों से तुम्हारे बाप-दादा (किसी वक़्त) निकाह कर चुके हों, तुम उन्हें निकाह में न लाओ अलबत्ता पहले जो कुछ हो चुका वह हो चुका यह बड़ी बेहयाई है, घिनौना अ़मल है, और ग़लत रास्ते पर चलने वाली बात है। (22)
And do not marry the women whom your forefathers married. What has happened before is over. This is a
great shame, an abominable deed and a wrong path. (22)
तुम पर हराम कर दी गई हैं तुम्हारी माँयें और तुम्हारी बेटियाँ और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफियाँ और तुम्हारी ख़ालायें और भतीजियाँ और भानजियाँ, और तुम्हारी वे माँयें जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया है, और तुम्हारी दूध-शरीक बहनें, (19) और तुम्हारी बीवियों की माँयें, और तुम्हारी परवरिश में आयीं तुम्हारी सौतेली बेटियाँ, जो तुम्हारी उन बीवियों (के पेट) से हों जिनके साथ तुमने तन्हाई की हो। हाँ अगर तुम ने उनके साथ तन्हाई न की हो (और उन्हें तलाक़ दे दी हो या उनका इन्तिक़ाल हो गया हो) तो तुम पर (उनकी लड़कियों से निकाह करने में) कोई ग़ुनाह नहीं है, तथा तुम्हारे सुलबी (यानी तुम्हारी पीठ से निकले) बेटों की बीवियाँ भी तुम पर हराम हैं, और यह बात भी हराम है कि तुम दो बहनों को एक साथ निकाह में जमा करो, अलबत्ता जो कुछ पहले हो चुका वह हो चुका बेशक अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला, बड़ा मेहरबान है। (23)
Forbidden
for you are your mothers and your daughters and your sisters and your aunts and
your maternal aunts and your nieces and nieces, and your
mothers who have breastfed you, and your nursing sisters, (19) and the mothers of your wives, and your step-daughters who have been
brought up by you, who are from the wombs of your wives with whom
you have lived alone. Yes, if you have not lived alone with them (and you have
divorced them or they have died), then there is no sin for you (in marrying their
daughters). And the wives of your sons who have come from
your backs are also forbidden for you. And it
is also forbidden for you to marry two sisters together, but what
has happened before has happened before. Surely Allah is Most Forgiving, Most
Merciful. (23)
और वे औरतें (तुम पर हराम हैं) जो दूसरे शौहरों के निकाह में हों, अलबत्ता जो कनीज़ें (इस्लामी उसूल के एतिबार से बाँदियाँ) तुम्हारी मिल्कियत में आ जायें (वे इस हुक्म से बाहर हैं)। अल्लाह ने ये अहकाम तुम पर फ़र्ज़ कर दिये हैं। इन औरतों को छोड़कर तमाम औरतों के बारे में यह हलाल कर दिया गया है कि तुम अपना माल (मेहर के तौर पर) ख़र्च करके उन्हें (अपने निकाह में लाना) चाहो, बशर्तेकि तुम उनसे बाक़ायदा निकाह का रिश्ता क़ायम करके पाकदामनी हासिल करो, सिर्फ़ जिन्सी इच्छा पूरी करना मक़सूद न हो चुनाँचे जिन औरतों से (निकाह करके) तुमने लुत्फ़ उठाया हो, उनको उनका वह मेहर अदा करो जो मुक़र्रर (तय) किया गया हो। अलबत्ता मेहर मुक़र्रर करने के बाद भी जिस (कमी-ज़्यादती) पर तुम आपस में राज़ी हो जाओ उसमें तुम पर कोई गुनाह नहीं। यक़ीन रखो कि अल्लाह हर बात का इल्म भी रखता है, हिक्मत का भी मालिक है। (24)
And those
women (are forbidden for you) who are married to other husbands, however
those concubines (slaves according to Islamic principles) who come into your possession
(they are outside this order). Allah has made these orders compulsory for you.
Apart from these women, it has been made lawful for all women that you should
spend your wealth (as dowry) and try to get them (in your marriage), provided
that you establish a proper relationship of marriage with them and attain
purity, and the aim is not only to satisfy sexual desire.
Therefore, those women whom you have enjoyed (by marrying), pay
them their dowry which has been fixed. However, even after fixing the dowry,
whatever (excess or decrease) you agree upon amongst yourselves, there is no
sin on you in that. Be assured that Allah is All-Knowing and All-Wise. (24)
और तुम में से जो लोग इस बात की ताक़त न रखते हों कि आज़ाद मुसलमान औरतों से निकाह कर सकें तो वे उन मुसलमान कनीज़ों (बाँदियों) में से किसी से निकाह कर सकते हैं जो तुम्हारी मिल्कियत में हों, और अल्लाह को तुम्हारे ईमान की पूरी हालत ख़ूब मालूम है। तुम सब आपस में एक जैसे हो। लिहाज़ा उन कनीज़ों (बाँदियों) से उनके मालिकों की इजाज़त से निकाह कर लो, और उनको क़ायदे (दस्तूर और नियम) के मुताबिक़ उनके मेहर अदा करो, बशर्तेकि उनसे निकाह का रिश्ता क़ायम करके उन्हें पाकदामन बनाया जाये। न वे सिर्फ़ शहवत (जिन्सी इच्छा) पूरी करने के लिये कोई (नाजायज़) काम करें, और न छुपे तौर पर नाजायज़ दोस्ती और ताल्लुक़ात पैदा करें। फिर जब वे निकाह की हिफ़ाज़त में आ जायें और उसके बाद किसी बड़ी बेहयाई (यानी ज़िना) का जुर्म करें तो उन पर उस सज़ा से आधी सज़ा वाजिब होगी जो (ग़ैर-शादीशुदा) आज़ाद औरतों के लिये मुक़र्रर (निर्धारित) है। यह सब (यानी बाँदियों से निकाह करना) तुम में से उन लोगों के लिये है जिनको (निकाह न करने की सूरत में) गुनाह में मुब्तला होने का अन्देशा (डर और आशंका) हो। और अगर तुम सब्र ही किये रहो तो यह तुम्हारे लिये बहुत बेहतर है। और अल्लाह बख़्शने वाला, बड़ा मेहरबान है। (25)
And those of
you who are not capable of marrying free Muslim women can marry any of the
Muslim slaves who are in your possession, and
Allah knows the full state of your faith. You are all the same. So, marry those
slaves with the permission of their masters, and pay
them their dowry according to the rules, provided
that they are made chaste by establishing a relationship of marriage with them.
They should not do anything just to satisfy their lust, nor should
they secretly develop illegal friendships and relations. Then if they come
under the protection of marriage and after that commit a crime of major indecency
(i.e., adultery), then half the punishment prescribed for free women will be
obligatory on them. All this (i.e., marrying slaves) is for those among you who
fear (fear and apprehension) of committing sin (in case of not marrying). And
if you remain patient, then it is better for you. And Allah is Forgiving, Most
Merciful. (25)
अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे लिये (अहकाम की) वज़ाहत कर दे, और जो (नेक) लोग तुम से पहले गुज़रे हैं तुमको उनके तौर-तरीकों पर ले आये, और तुम पर (रहमत के साथ) तवज्जोह फ़रमाये। और अल्लाह हर बात का जानने वाला भी है, हिक्मत वाला भी। (26)
Allah
desires to make clear to you (the rules) and bring you to the ways of those who have gone before you, and to
look upon you (with mercy). And Allah is All-Knowing and All-Wise. (26)
अल्लाह तो चाहता है कि तुम्हारी तरफ़ तवज्जोह करे, और जो लोग नफ़्सानी इच्छाओं के पीछे लगे हुए हैं वे चाहते हैं कि तुम सही रास्ते से हटकर बहुत दूर जा पड़ो। (27)
Indeed,
Allah wishes to pay attention to you, and
those who follow their own desires wish that you stray far away from the right
path. (27)
अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे साथ आसानी का मामला करे, और इनसान कमज़ोर पैदा हुआ है। (28)
Allah wishes
to deal with you in an easy way, and man is born weak. (28)
ऐ ईमान वालो! आपस में एक दूसरे के माल नाहक़ तरीक़े से न खाओ, हाँ मगर यह कि कोई तिजारत आपसी रज़ामन्दी से वजूद में आई हो (तो वह जायज़ है), और अपने आपको क़त्ल न करो। यक़ीन जानो अल्लाह तुम पर बहुत मेहरबान है। (29)
O you who
believe! Do not usurp one another's property unjustly, except if
a trade is carried on by mutual consent, and do
not kill yourselves. Know for certain that Allah is most gracious to you. (29)
और जो शख़्स ज़्यादती और ज़ुल्म के तौर पर ऐसा करेगा तो हम उसको आग में दाख़िल करेंगे। और यह बात अल्लाह के लिये बिल्कुल आसान है। (30)
And whoever
does this as an excess and injustice, we will make him enter the Fire. And this
is very easy for Allah. (30)
अगर तुम उन बड़े-बड़े गुनाहों से परहेज़ करो जिनसे तुम्हें रोका गया है तो तुम्हारी छोटी बुराईयों का हम ख़ुद कफ़्फ़ारा कर देंगे, और तुमको एक इज़्ज़त वाली जगह दाख़िल करेंगे। (31)
If you
refrain from the major sins from which you have been forbidden, we will forgive
you for your minor sins and admit you to a place of honor. (31)
और जिन चीज़ों में हमने तुमको एक दूसरे पर बरतरी और बड़ाई दी है, उनकी तमन्ना न करो। मर्द जो कुछ कमाई करेंगे उनको उसमें से हिस्सा मिलेगा और औरतें जो कुछ कमाई करेंगी उनको उसमें से हिस्सा मिलेगा। और अल्लाह से उसका फ़ज़्ल माँगा करो। बेशक अल्लाह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है। (32)
And do not
desire those things in which We have given you superiority over one another. Men
will have a share of whatever they earn, and women will have a share of
whatever they earn. And seek Allah's bounty. Surely Allah is All-Knowing. (32)
और हमने हर उस माल के कुछ वारिस मुक़र्रर किये हैं जो माँ-बाप और ज़्यादा क़रीब के रिश्तेदार छोड़कर जायें और जिन लोगों से तुमने कोई अ़हद बाँधा (यानी कोई मामला तय किया) हो उनको उनका हिस्सा दो। बेशक अल्लाह हर चीज़ का गवाह है। (33)
And We have
appointed some heirs for every property which parents and close relatives leave
behind, and give them their share to those with whom you have made a covenant.
Surely Allah is the witness of everything. (33)
मर्द औरतों के निगराँ हैं, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर फ़ज़ीलत दी है, और क्योंकि मर्दों ने अपने माल ख़र्च किये हैं। चुनाँचे नेक औरतें फ़रमाँबरदार होती हैं, मर्द की ग़ैर-मौजूदगी में अल्लाह की दी हुई हिफ़ाज़त से (उसके हुक़ूक़ की) हिफ़ाज़त करती हैं। और जिन औरतों से तुम्हें सरकशी (नाफ़रमानी) का अन्देशा हो तो (पहले) उन्हें समझाओ, और (अगर इससे काम न चले तो) उन्हें सोने की जगहों में तन्हा छोड़ दो, (और इससे भी सुधार न हो तो) उन्हें मार सकते हो। फिर अगर वे तुम्हारी बात मान लें तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई का रास्ता तलाश न करो। यक़ीन रखो कि अल्लाह सब के ऊपर, सब से बड़ा है। (34)
Men are the guardians of women because Allah has given one of them more importance
than the other, and because men have spent their wealth.
So, the pious women are obedient, they guard their husbands in their absence by
the protection given by Allah. And if you fear women to be disobedient, then (first) admonish them, and (if that does not work) leave them alone in
their sleeping places, (and if that does not improve) you can beat them.
Then if they agree with you, then do not seek any action against them. Have
faith that Allah is above all, the greatest. (34)
और अगर तुम्हें मियाँ-बीवी के दरमियान फूट पड़ने का अन्देशा हो तो (उनके दरमियान फ़ैसला कराने के लिये) एक मुन्सिफ़ (इन्साफ़ करने वाला फ़ैसला करने वाला) मर्द के ख़ानदान में से और एक मुन्सिफ़ औरत के ख़ानदान में से भेज दो। अगर वे दोनों इस्लाह (सुधार और मेल-मिलाप) कराना चाहेंगे तो अल्लाह दोनों के दरमियान इत्तेफ़ाक़ पैदा फ़रमा देगा। बेशक अल्लाह को हर बात का इल्म और हर बात की ख़बर है। (35)
And if you
fear a schism between a husband and wife, then send a judge from the man's
family and a judge from the woman 's family. If they both seek to be rectified,
Allah will cause them to agree. Surely Allah knows everything and is aware of
everything. (35)
और अल्लाह की इबादत करो, और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ, और माँ-बाप के साथ अच्छा सुलूक करो, तथा रिश्तेदारों, यतीमों, मिस्कीनों, क़रीब वाले पड़ोसी, दूर वाले पड़ोसी साथ बैठे (या साथ खड़े) हुए शख़्स और राहगीर के साथ और अपने ग़ुलाम बाँदियों के साथ भी (अच्छा बर्ताव रखो)। बेशक अल्लाह किसी इतराने वाले शेखीबाज़ को पसन्द नहीं करता। (36)
And worship
Allah, and do not associate partners with Him, and be
kind to parents, and to relatives, orphans, the
poor, the near neighbor, the
distant neighbor, the person sitting (or standing) with you, and the passerby,
and to your slaves. Surely Allah does not like any boaster. (36)
ऐसे लोग जो ख़ुद भी कन्जूसी करते हैं और दूसरों को भी कन्जूसी की तल्क़ीन (तालीम व हिदायत) करते हैं, और अल्लाह ने उनको अपने फ़ज़्ल से जो कुछ दे रखा है उसे छुपाते हैं। और हम ने ऐसे नाशुक्रों के लिये ज़लील कर देने वाला अ़ज़ाब तैयार कर रखा है। (37)
Those who
are miserly themselves and preach miserliness to others, and hide
what Allah has bestowed on them from His bounty. And We have prepared a humiliating
punishment for such ungrateful people. (37)
और वे लोग जो अपने माल लोगों को दिखाने के लिये ख़र्च करते हैं, और न अल्लाह पर ईमान रखते हैं, न आख़िरत के दिन पर और शैतान जिसका साथी बन जाये तो वह बहुत बुरा साथी होता है। (38)
And those
who spend their wealth to show off to others, and do
not believe in Allah or the Last Day, and if
Satan becomes a companion to someone, then he is a very bad companion. (38)
भला इनका क्या बिगड़ जाता अगर ये अल्लाह और आख़िरत के दिन (यानी मरने के बाद ज़िन्दा होने, हिसाब-किताब और जन्नत व दोज़ख़) पर ईमान ले आते और अल्लाह ने इनको जो रिज़्क़ अ़ता फ़रमाया है उसमें से कुछ (नेक कामों में) ख़र्च कर देते? और अल्लाह को इनका हाल ख़ूब मालूम है। (39)
What harm
would it do them if they believed in Allah and the Last Day (i.e., life after
death, accounting, Paradise and Hell) and spent some
of the sustenance that Allah has provided them (in good deeds)? And
Allah is well aware of their condition. (39)
अल्लाह ज़र्रा बराबर भी किसी पर ज़ुल्म नहीं करता, और अगर कोई नेकी हो तो उसे कई गुना कर देता है, और ख़ुद अपने पास से अ़ज़ीम (बहुत ज़्यादा और बड़ा) सवाब देता है। (40)
Allah does
not do injustice to anyone even to the slightest extent, and if
one does good deeds, He multiplies them manifold, and
gives a great reward from Himself. (40)
फिर (ये लोग सोच रखें कि) उस वक़्त (इनका) क्या हाल होगा जब हम हर उम्मत में से एक गवाह लेकर आयेंगे, और (ऐ पैग़म्बर!) हम तुमको इन लोगों के ख़िलाफ़ गवाह के तौर पर पेश करेंगे। (41)
Then (let
them think) what will happen to them when We will bring a witness from every
community, and (O Prophet!) We will present you as a witness
against these people. (41)
जिन लोगों ने कुफ़्र अपना रखा है और रसूल के साथ नाफ़रमानी का रवैया इख़्तियार किया है, उस दिन वे यह तमन्ना करेंगे कि काश उन्हें ज़मीन (में धंसाकर उस) के बराबर कर दिया जाये, और वे अल्लाह से कोई बात छुपा नहीं सकेंगे। (42)
Those who
have disbelieved and disobeyed the Prophet will wish that day that they would be brought to the level of the earth, and they will not be able to hide anything from Allah. (42)
ऐ ईमान वालो! जब तुम नशे की हालत में हो तो उस वक़्त तक नमाज़ के क़रीब भी न जाना जब तक तुम जो कुछ कह रहे हो उसे समझने न लगो, और जनाबत (नापाकी) की हालत में भी, जब तक ग़ुस्ल न कर लो (नमाज़ जायज़ नहीं), हाँ मगर यह कि तुम मुसाफ़िर हो (और पानी न मिले तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ सकते हो)। और अगर तुम बीमार हो या सफ़र पर हो या तुम में से कोई (पेशाब-पाख़ाने की) ज़रूरत पूरी करने की जगह से आया हो या तुमने औरतों को छुआ हो, फिर तुमको पानी न मिले तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो, और अपने चेहरों और हाथों का (उस मिट्टी से) मसह कर लो। बेशक अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला, बड़ा बख़्शने वाला है। (43)
O you who
believe! When you are intoxicated, do not approach prayer until you understand
what is being said. And when you are in a state of impurity, do not
perform prayer until you have taken a bath. Except
if you are a traveler, you may perform tayammum and pray. And if you are sick
or on a journey, or if any of you has come from a place where water is needed,
or if you have touched women, and if you do not find water, perform
tayammum with pure soil, and wipe your faces and hands with it. Surely,
Allah is the most forgiving, the most forgiving. (43)
जिन लोगों को किताब (यानी तौरात के इल्म) में से एक हिस्सा दिया गया था, क्या तुमने उनको नहीं देखा कि वे (किस तरह) गुमराही मोल ले रहे हैं, और चाहते हैं कि तुम भी रास्ते से भटक जाओ। (44)
those who
were given a portion of the Book (i.e., the knowledge of the Torah) seeking astray, and wanting you to go astray? (44)
और अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों को ख़ूब जानता है, और रखवाला बनने के लिये भी अल्लाह काफ़ी है, और मददगार बनने के लिये भी अल्लाह काफ़ी है। (45)
And Allah
knows your enemies well, and Allah is sufficient as a protector, and
Allah is sufficient as a helper. (45)
यहूदियों में से कुछ वे हैं जो (तौरात के) अलफ़ाज़ को उनके मौक़ा-महल (असल जगह) से हटा डालते हैं, और अपनी ज़बानों को तोड़-मरोड़कर और दीन में ताना मारते हुए कहते हैं समिअ़ना व अ़सैना (हमने आपकी बात सुन ली और नाफ़रमानी की) और इस्मअ् गै-र मुस्मअिन् (आप हमारी बात सुनें, ख़ुदा करे आपको कोई बात सुनाई न जाये) और ' राई़ना (इबरानी भाषा में यह गाली का लफ़्ज़ था) हालाँकि अगर वे यह कहते समिअ़ना व अतअ़तना (हमने सुना और माना) और इस्मअ़ वन्जु़रना (सुनिये और हम पर नज़र कीजिये) तो उनके लिये बेहतर और सही रास्ता इख़्तियार करना होता, लेकिन उनके कुफ़्र की वजह से अल्लाह ने उन पर फटकार डाल रखी है, इसलिए थोड़े से लोगों के सिवा वे ईमान नहीं लाते। (46)
Among the
Jews are some who move the words (of the Torah) out of their proper place , and distort their tongues and taunt the religion by saying, "Sami'anah wa asaina (We have listened to
your words and disobeyed you), "Ism'a ghair musma'in (Listen to us , may God not let anything be said to you), " Raa'ina (It was an abusive word in Hebrew), although
if they had said "Sami'anah wa at'atna (We have listened and
obeyed)" and "Ism'a wanzurnah (Listen and look at us), then it would have
been better for them and the right way , but Allah has punished them because of their disbelief , so they do not believe except a few. (46)
ऐ अहले किताब! जो (क़ुरआन) हमने अब नाज़िल किया है, जो तुम्हारे पास पहले से मौजूद किताब की तस्दीक़ भी करता है, उस पर ईमान ले आओ इससे पहले कि हम कुछ चेहरों को मिटाकर उन्हें गुद्दी जैसा बना दें, या उन पर ऐसी फटकार डाल दें जैसी फटकार हमने सब्त वालों पर डाली थी। और अल्लाह का हुक्म हमेशा पूरा होकर रहता है। (47)
Believe in
what We have revealed now, confirming what you already had, before We erase some of the faces and make them like dust or punish them with a curse like the ones, we
punished the people of the Sabbath. And Allah's command is ever fulfilled. (47)
बेशक अल्लाह इस बात को माफ़ नहीं करता कि उसके साथ किसी को शरीक ठहराया जाये, और इससे कमतर हर बात को जिसके लिये चाहता है माफ़ कर देता है, और जो शख़्स अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराता है वह ऐसा बोहतान बाँधता है जो बड़ा ज़बरदस्त गुनाह है। (48)
Surely Allah
does not forgive anyone who associates partners with Him, and He forgives anything less than that for whomsoever He wishes. And
whoever associates partners with Allah commits a great sin. (48)
क्या तुम ने उन लोगों को नहीं देखा जो अपने आपको बड़ा पाकीज़ा (पवित्र) बताते हैं? हालाँकि पाकीज़गी तो अल्लाह जिसको चाहता है अ़ता करता है, और (उस अ़ता में) उन पर एक धागे के बराबर भी ज़ुल्म नहीं होता। (49)
Have you not
seen those who claim to be the most pure? But
Allah grants purity to whomsoever He wishes, and they
are not wronged even by a thread. (49)
देखो ये लोग अल्लाह पर कैसे-कैसे झूठे बोहतान बाँधते हैं, और खुला गुनाह होने के लिये यही बात काफ़ी है। (50)
Look at the
lies they accuse Allah of, and this is enough to constitute an open sin.
(50)
जिन लोगों को किताब (यानी तौरात के इल्म) में से एक हिस्सा दिया गया था, क्या तुमने उनको नहीं देखा कि वे (किस तरह) बुतों और शैतान की तस्दीक़ कर रहे हैं और काफ़िरों (यानी बुत परस्तों) के बारे में कहते हैं कि ये मोमिनों से ज़्यादा सीधे रास्ते पर हैं। (51)
those who
were given a portion of the Book (i.e., the knowledge of the Torah) confirming the idols and Satan and saying about the unbelievers (i.e., idol
worshippers) that they are more guided than the believers? (51)
ये वे लोग हैं जिन पर अल्लाह ने फटकार डाल रखी है, और जिस पर अल्लाह फटकार डाल दे, उसके लिये तुम कोई मददगार नहीं पाओगे। (52)
These are
the people whom Allah has cursed, and you will not find any helper for the one whom
Allah curses. (52)
तो क्या उनको (कायनात की) बादशाही का कुछ हिस्सा मिला हुआ है? अगर ऐसा होता तो ये लोगों को गुठली के शिगाफ़ (ख़ाली हिस्से और खुले हुए हिस्से) के बराबर भी कुछ न देते। (53)
So do they
have any share in the kingdom of the universe? If that were so, they would not have given to mankind even a
fraction of the kernel. (53)
या ये लोगों से इस बिना पर हसद करते हैं कि अल्लाह ने उनको अपना फ़ज़्ल (क्यों) अ़ता फ़रमाया है? सो हमने तो (हज़रत) इब्राहीम के ख़ानदान को किताब और हिक्मत (दानाई व समझ की चीज़) अ़ता की थी और उन्हें बड़ी सल्तनत दी थी। (54)
Or do they
envy people on the ground that Allah has bestowed His bounty on them? So We
had indeed bestowed the Book and wisdom on the family of Ibrahim and had given
them a vast kingdom. (54)
चुनाँचे उनमें से कुछ उन पर ईमान लाये और कुछ ने उनसे मुँह मोड़ लिया और जहन्नम एक भड़कती आग की शक्ल में (उन काफ़िरों की ख़बर लेने के लिये) काफ़ी है। (55)
So some of
them believed in them and some of them turned their backs to them, and Hell is
enough in the form of a blazing fire (to take notice of those disbelievers). (55)
बेशक जिन लोगों ने हमारी आयतों से इनकार किया है हम उन्हें आग में दाख़िल करेंगे। जब भी उनकी खालें जल-जलकर पक जायेंगी तो हम उन्हें उनके बदले दूसरी खालें दे देंगे ताकि वे अ़ज़ाब का मज़ा चखें। बेशक अल्लाह इक़्तिदार (हुकूमत व इख़्तियार) वाला भी है, हिक्मत वाला भी। (56)
Surely, we
will make those who have disbelieved in Our verses enter the Fire. When their
skins burn and get cooked, we will replace them with new skins so that they may
taste the punishment. Surely, Allah is the All-Powerful and the All -Wise. (56)
और जो लोग ईमान लाये हैं और उन्होंने नेक अ़मल किये हैं, उनको हम ऐसे बाग़ों (यानी जन्नतों) में दाख़िल करेंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, जिनमें वे हमेशा-हमेशा रहेंगे। वहाँ उनके लिये पाकीज़ा बीवियाँ होंगी, और हम उन्हें घनी छाँओं में दाख़िल करेंगे। (57)
And those
who have believed and done good deeds, we will
admit them into gardens beneath which rivers flow, wherein
they will abide forever. Therein they will have chaste wives, and We
will admit them into dense shades. (57)
(ऐ मुसलमानो!) यक़ीनन अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि तुम अमानतें उनके हक़दारों तक पहुँचाओ, और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो तो इन्साफ़ के साथ फ़ैसला करो। यक़ीन जानो अल्लाह तुमको जिस बात की नसीहत करता है वह बहुत अच्छी होती है बेशक अल्लाह हर बात को सुनता और हर चीज़ को देखता है। (58)
(O Muslims!)
Surely Allah commands you to deliver the trusts to their rightful owners, and when
you judge between people, judge with justice. Be assured that whatever Allah
advises you to do is very good. Surely Allah hears everything and sees everything.
(58)
ऐ ईमान वालो! अल्लाह की इताअ़त (फ़रमाँबरदारी) करो और उसके रसूल की भी इतात करो, और तुम में से जो लोग इख़्तियार वाले हों उनकी भी फिर अगर तुम्हारे बीच किसी चीज़ में इख़्तिलाफ़ (झगड़ा) हो जाये तो अगर वाक़ई तुम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो तो उसे अल्लाह और रसूल के हवाले कर दो। यही तरीक़ा बेहतरीन है और इसका अन्जाम भी सबसे बेहतर है। (59)
O you who
believe! Obey Allah and obey His Messenger, and
those among you who have authority. Then if you dispute about something, leave
it to Allah and His Messenger if you truly believe in Allah and the Last Day.
This is the best way and its end is the best. (59)
(ऐ पैग़म्बर!) क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो दावा यह करते हैं कि वे उस कलाम पर भी ईमान ले आये हैं जो तुम पर नाज़िल किया गया है और उस पर भी जो तुम से पहले नाज़िल किया गया था, (लेकिन) उनकी हालत यह है कि वे अपना मुक़दमा फ़ैसले के लिये ताग़ूत (शैतान) के पास लेजाना चाहते हैं? हालाँकि उनको हुक्म यह दिया गया था कि वे उसका खुलकर इनकार करें। और शैतान चाहता है कि उन्हें भटका कर परले दर्जे (यानी बहुत दूर) की गुमराही में मुब्तला कर दे। (60)
(O Prophet!)
Have you not seen those who claim to believe in the word that was revealed to
you and in that which was revealed before you, (but) their condition is such that
they want to take their case to Taghut (Satan) for judgment? Although they were
ordered to openly deny it. And Satan wants to mislead them and make them fall
into the farthest level of misguidance. (60)
और जब उनसे कहा जाता है कि आओ इस हुक्म की तरफ़ जो अल्लाह ने उतारा है और आओ रसूल की तरफ़, तो मुनाफ़िक़ों को देखोगे कि वे तुमसे पूरी तरह मुँह मोड़ बैठते हैं। (61)
And when
they are told: "Come to the command which Allah has sent
down and come to the messenger, " you will see the hypocrites turning their
backs on you completely. (61)
फिर उस वक़्त उनका क्या हाल बनता है जब ख़ुद अपने हाथों के करतूत की वजह से उन पर कोई मुसीबत आ पड़ती है। उस वक़्त ये आपके पास अल्लाह की क़समें खाते हुए आते हैं कि हमारा मक़सद भलाई करने और मिलाप करा देने के सिवा कुछ न था। (62)
Then what
happens to them when a calamity befalls them because of the deeds of their own
hands? Then they come to you swearing in the name of Allah that their aim was
nothing but to do good and to bring about reconciliation. (62)
ये वे हैं कि अल्लाह इनके दिलों की सारी बातें ख़ूब जानता है। लिहाज़ा तुम उन्हें नज़र-अन्दाज़ (अनदेखा) करो, उन्हें नसीहत करो और उनसे ख़ुद उनके बारे में ऐसी बात कहते रहो जो दिल में उतर जाने वाली हो। (63)
These are
those whose hearts are well known to Allah. So ignore them, admonish
them and say to them such things about themselves which will touch the heart. (63)
और हमने कोई रसूल इसके सिवा किसी और मक़सद के लिये नहीं भेजा कि अल्लाह के हुक्म से उसकी इताअ़त की जाये और जब इन लोगों ने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया था, अगर ये उस वक़्त तुम्हारे पास आकर अल्लाह से मग़फ़िरत (ख़ताओं की माफ़ी) माँगते और रसूल भी इनके लिये मग़फ़िरत की दुआ करते तो ये अल्लाह को बहुत माफ़ करने वाला बड़ा मेहरबान पाते। (64)
And We did
not send any messenger except to be obeyed by the command of Allah. And if they
had come to you at that time when they had wronged their own souls and had
asked forgiveness from Allah and had the Messenger also prayed for forgiveness
for them, they would have found Allah Most Forgiving, Most Merciful. (64)
नहीं, (ऐ पैग़म्बर!) तुम्हारे परवर्दिगार की क़सम! ये लोग उस वक़्त तक मोमिन नहीं हो सकते जब तक ये अपने आपसी झगड़ों में तुम्हें फ़ैसल (फ़ैसला करने वाला) न बनायें, फिर तुम जो कुछ फ़ैसला करो उसके बारे में अपने दिलों में कोई तंगी महसूस न करें, और उसके आगे मुकम्मल तौर पर अपनी गर्दन झुका दें (यानी पूरी तरह दिल से क़ुबूल करें) (65)
No, (O Prophet!) By your Lord! They cannot be believers until they make you the
judge in their disputes, and then you should not feel any hesitation
in your hearts about whatever you decide, and you
should completely bow your heads before it (i.e., accept it with all your
heart). (65)
और अगर हम उनके लिये यह फ़र्ज़ क़रार दे देते कि तुम अपने आपको क़त्ल करो या अपने घरों से निकल जाओ तो उनमें से थोड़े से लोगों के सिवा कोई इस पर अ़मल नहीं करता। और जिस बात की उन्हें नसीहत की जा रही है अगर ये लोग उस पर अ़मल कर लेते तो उनके हक़ में कहीं बेहतर होता, और उनमें ख़ूब साबित क़दमी (हक़ पर जमाव) पैदा कर देता। (66)
And if We
had made it obligatory for them to kill themselves or leave their homes, no one
would have acted on it except a few of them. And if they had acted on what they
are being advised to do, it would have been better for them. And would have created among them a firm
stand (of faith in the truth). (66)
और उस सूरत में हम उन्हें ख़ुद अपने पास से यक़ीनन बड़ा अज्र अ़ता करते। (67)
And in that
case We would have surely bestowed on them a great reward from Ourself. (67)
और उन्हें ज़रूर यक़ीनन सीधे रास्ते तक पहुँचा देते। (68)
And I would
have certainly guided them to the straight path. (68)
और जो लोग अल्लाह और रसूल की इताअ़त करेंगे तो वे उनके साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने इनाम फ़रमाया है, यानी अम्बिया, सिद्दीक़ीन, शुहदा और सालिहीन (नेक लोग) और वे कितने अच्छे साथी हैं। (69)
And those
who obey Allah and His prophet will be with those whom Allah has blessed with
His grace, the prophets, the
Siddiqeen, the Shuhada and the Saliheen (righteous ones).
And they are such good companions. (69)
यह फ़ज़ीलत (मर्तबा और बड़ाई) अल्लाह की तरफ़ से मिलती है, और (लोगों के हालात से) पूरी तरह वाक़िफ़ होने के लिये अल्लाह काफ़ी है। (70)
This virtue
(status and greatness) is given by Allah, and
Allah is sufficient for all to know. (70)
ऐ ईमान वालो! (दुश्मन से मुक़ाबले के वक़्त) अपने बचाव का सामान साथ रखो, फिर अलग-अलग दस्तों (टुकड़ियों) की शक्ल में (जिहाद के लिये) निकलो या सब लोग इकट्ठे होकर निकल जाओ। (71)
O you who
believe! Carry your protective gear with you (when you face the enemy), then go
out in groups or all of you together. (71)
और यक़ीनन तुम में कोई ऐसा भी ज़रूर होगा जो (जिहाद में जाने से) सुस्ती दिखायेगा, फिर अगर (जिहाद के दौरान) तुम पर कोई मुसीबत आ जाये तो वह कहेगा कि अल्लाह ने मुझ पर बड़ा इनाम किया कि मैं इन लोगों के साथ मौजूद नहीं था। (72)
And there
will certainly be someone among you who will be lazy (from going to Jihad), then if
any calamity befalls you, he will say: Allah has bestowed a great bounty on me
because I was not present with these people. (72)
और अगर अल्लाह की तरफ़ से कोई फ़ज़्ल (यानी फ़तह और माले ग़नीमत) तुम्हारे हाथ आये तो वह कहेगा गोया तुम्हारे और उसके बीच कभी कोई दोस्ती तो थी ही नहीं, कि काश मैं भी इन लोगों के साथ होता तो बहुत कुछ मेरे भी हाथ लग जाता। (73)
And if you
get any bounty from Allah, he will say as if there was never any friendship between
you and him, 'If only I had been with these people, I would
have got a lot.' (73)
लिहाज़ा अल्लाह के रास्ते में वे लोग लड़ें जो दुनिया की ज़िन्दगी को आख़िरत के बदले बेच दें। और जो अल्लाह के रास्ते में लड़ेगा, फिर चाहे क़त्ल हो जाये या ग़ालिब आ जाये, (हर सूरत में) हम उसको ज़बरदस्त सवाब अ़ता करेंगे। (74)
So those who
sell the life of this world for the Hereafter should fight in the way of Allah.
And whoever fights in the way of Allah, whether
he is killed or overcomes, we will reward him with a great reward. (74)
और (ऐ मुसलमानो) तुम्हारे पास क्या जवाज़ (तर्क) है कि अल्लाह के रास्ते में और उन बेबस मर्दों औरतों और बच्चों की ख़ातिर न लड़ो जो यह दुआ करते हैं कि ऐ हमारे परवर्दिगार! हमें इस बस्ती से निकाल लाईए जिसके रहने वाले ज़ुल्म ढहा रहे हैं, और हमारे लिये अपनी तरफ़ से कोई हामी (हिमायती) पैदा कर दीजिए और हमारे लिये अपनी तरफ़ से कोई मददगार खड़ा कर दीजिए। (75)
And what
argument do you have that you should not fight in the way of Allah and for the
helpless men, women and children who are praying: "O Lord! Take us out of this town whose inhabitants
are committing atrocities, and raise up for us a supporter from Your
side and raise up for us a helper from Your side." (75)
जो लोग ईमान लाये हुए हैं वे अल्लाह के रास्ते में लड़ते हैं, और जिन लोगों ने कुफ़्र अपना लिया है वे ताग़ूत (शैतान) के रास्ते में लड़ते हैं। लिहाज़ा (ऐ मुसलमानो।) तुम शैतान के दोस्तों से लड़ो। (याद रखो कि) शैतान की चालें दर हक़ीक़त कमज़ोर हैं। (76)
Those who
believe fight in the way of Allah, and those who have accepted disbelief fight
in the way of Taghut (Satan). So (O Muslims.) Fight the friends of Satan.
(Remember that) Satan's tricks are indeed weak. (76)
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे (मक्की ज़िन्दगी में) कहा जाता था कि अपने हाथ रोक कर रखो और नमाज़ क़ायम किये जाओ और ज़कात देते रहो। फिर जब उन पर जंग फ़र्ज़ की गई तो उनमें से एक जमाअ़त (दुश्मन) लोगों से ऐसी डरने लगी जैसे अल्लाह से डरा जाता है, या उससे भी ज़्यादा डरने लगी और ऐसे लोग कहने लगे कि ऐ हमारे परवर्दिगार! आपने हम पर जंग क्यों फ़र्ज़ कर दी, थोड़ी मुद्दत तक हमें मोहलत क्यों नहीं दी? कह दो कि दुनिया का फ़ायदा तो थोड़ा सा है, और जो शख़्स तक़वा (परहेज़गारी) इख़्तियार करे उसके लिये आख़िरत बहुत ज़्यादा बेहतर है, और तुम पर एक धागे के बराबर भी ज़ुल्म नहीं होगा। (77)
Have you not
seen those who were told (in Meccan life) to hold their hands and keep up the
prayer and give the Zakat. Then when war was made compulsory for them, a group
of them feared people as one fears Allah, or even
more than that, and they said, "O our Lord! Why did you make war compulsory for us, why did
you not give us a little respite? " Say: "The benefit of this world is very little , and whoever practices piety, for him the Hereafter is much better , and you will not be wronged even to the extent of a thread." (77)
तुम जहाँ भी होगे (एक न एक दिन) मौत तुम्हें जा पकड़ेगी, चाहे तुम मज़बूत किलों में क्यों न रह रहे हो। और अगर उन (मुनाफ़िक़ों) को कोई भलाई पहुँचती है तो वे कहते हैं कि यह अल्लाह की तरफ़ से है, और अगर उनको कोई बुरा वाक़िआ पेश आ जाता तो (ऐ पैग़म्बर) वे (तुम से) कहते हैं कि यह बुरा वाक़िआ (घटना और हादसा) आपकी वजह से हुआ है। कह दो कि हर वाक़िआ अल्लाह की तरफ़ से होता है। इन लोगों को क्या हो गया है कि ये कोई बात समझने के नज़दीक तक नहीं आते? (78)
Death will
overtake you wherever you may be, even if you are living in strong
fortresses. And if any good thing reaches them they say that it is from Allah, and if
any evil happens to them they say that this evil thing has happened because of
you. Say: Every evil thing is from Allah. What has happened to these people
that they do not even come close to understanding anything? (78)
तुम्हें जो कोई अच्छाई पहुँचती है तो वह सिर्फ़ अल्लाह की तरफ़ से होती है, और जो कोई बुराई पहुँचती है वह तो तुम्हारे अपने सबब (कारण) से होती है। और (ऐ पैग़म्बर!) हमने तुम्हें लोगों के पास रसूल बनाकर भेजा है, और अल्लाह (इस बात की) गवाही देने के लिये काफ़ी है। (79)
Whatever
good reaches you, it is from Allah alone, and
whatever evil reaches you, it is because of your own actions. And (O Prophet!)
We have sent you as a messenger to the people, and Allah
is sufficient as a witness. (79)
जो रसूल की इताअ़त (हुक्मों का पालन) करे, उसने अल्लाह की इताअ़त की, और जो (इताअ़त से) मुँह फेर ले तो (ऐ पैग़म्बर!) हमने तुम्हें उन पर निगराँ बनाकर नहीं भेजा (कि तुम्हें उनके अ़मल का ज़िम्मेदार ठहराया जाये)। (80)
Whoever
obeys the Messenger (Rasul) has obeyed Allah, and
whoever turns away (from obedience), We have not sent you (O Prophet!) as a
guardian over them (so that you should be held responsible for their deeds). (80)
और ये (मुनाफ़िक़ लोग सामने तो) इताअ़त (फ़रमाँबरदारी) का नाम लेते हैं मगर ये तुम्हारे पास से बाहर जाते हैं तो इनमें से एक गिरोह रात के वक़्त तुम्हारी बातों के ख़िलाफ़ मश्विरे करता है, और ये रात के वक़्त जो मश्विरे करते हैं अल्लाह वह सब लिख रहा है। लिहाज़ा तुम इनकी परवाह मत करो। और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह तुम्हारी हिमायत के लिये बिल्कुल काफ़ी है। (81)
And these
hypocrites claim to obey you but when they go out from you, a group of them
plans at night against your words. And Allah is recording what they plan at night.
So do not worry about them. And trust in Allah. And Allah is sufficient for
you. (81)
क्या ये लोग क़ुरआन में ग़ौर व फ़िक्र (सोचने और ध्यान देने) से काम नहीं लेते? अगर यह अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ़ से होता तो वे इसमें बहुत ज़्यादा इख़्तिलाफ़ात (मज़ामीन में टकराव) पाते। (82)
Do they not
ponder over the Qur’an? Had it been revealed by someone other than Allah,
they would have found much discord in it. (82)
और जब इनको कोई भी ख़बर पहुँचती है, चाहे वह अमन की हो या ख़ौफ़ पैदा करने वाली, तो ये लोग उसे (तहक़ीक़ के बग़ैर) फैलाना शुरू कर देते हैं। और अगर ये उस (ख़बर) को रसूल के पास या इख़्तियार रखने वालों के पास ले जाते तो उनमें से जो लोग उसकी खोज निकालने वाले हैं वे उसकी हक़ीक़त मालूम कर लेते। (50) और (मुसलमानो!) अगर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत तुम पर न होती तो थोड़े से लोगों को छोड़कर बाक़ी सब शैतान के पीछे लग जाते। (83)
And when any
news reaches them, whether it is of peace or of terror, they
spread it (without investigating). And if they had carried it to the Messenger
or to those in authority, then those among them who are the seekers of it would
have known the truth. (50) And (Muslims!) Had it not been for the grace
of Allah and His mercy on you, all would have followed Satan except a few. (83)
लिहाज़ा (ऐ पैग़म्बर!) तुम अल्लाह के रास्ते में जंग करो। तुम पर अपने सिवा किसी और की ज़िम्मेदारी नहीं है। हाँ मोमिनों को तरग़ीब देते (यानी अच्छाई की तरफ़ उभारते और शौक़ दिलाते) रहो। कुछ बईद नहीं कि अल्लाह काफ़िरों की जंग का ज़ोर तोड़ दे। और अल्लाह का ज़ोर सब से ज़्यादा ज़बरदस्त है और उसकी सज़ा बड़ी सख़्त है। (84)
Therefore,
(O Prophet!) Fight in the way of Allah. You are not responsible for anyone else
except yourself. Yes, keep encouraging the believers (i.e., encourage them
towards goodness and inspire them). It is not surprising that Allah will break
the power of the disbelievers in fighting. And Allah's power is the most
powerful and His punishment is very severe. (84)
जो शख़्स कोई अच्छी सिफ़ारिश करता है उसको उसमें से हिस्सा मिलता है, और जो कोई बुरी सिफ़ारिश करता है उसे उस बुराई में से हिस्सा मिलता है, और अल्लाह हर चीज़ पर नज़र रखने वाला है। (85)
Whoever
recommends a good thing will get a share of it, and whoever
recommends a bad thing will get a share of the evil thing, and
Allah is All-Wise. (85)
और जब तुम्हें कोई शख़्स सलाम करे तो उसे उससे भी बेहतर तरीक़े पर सलाम करो, या (कम से कम) उन्हीं अलफ़ाज़ में उसका जवाब दे दो। (52) बेशक अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखने वाला है। (86)
And when a
person greets you, greet him with a better greeting, or (at least)
reply to him with the same words. (52) Surely, Allah is All-Knowing. (86)
अल्लाह वह है कि उसके सिवा कोई ख़ुदा नहीं। वह तुम्हें ज़रूर लाज़िमी तौर पर क़ियामत के दिन इकट्ठा करेगा, जिसके आने में कोई शक नहीं है। और कौन है जो अल्लाह से ज़्यादा बात का सच्चा हो? (87)
Allah is He,
and there is no god except Him. He will certainly gather you on the Day of
Resurrection, the coming of which is certain. And who is more
truthful than Allah? (87)
फिर तुम्हें क्या हो गया कि मुनाफ़िक़ों के बारे में तुम दो गुट बन गये? हालाँकि (53) उन्होंने जैसे काम किये हैं उनकी बिना पर अल्लाह ने उनको औंधा कर दिया है। क्या तुम यह चाहते हो कि ऐसे शख़्स को हिदायत (सही रास्ते) पर लाओ जिसे अल्लाह (उसकी इच्छा के मुताबिक़) गुमराही में मुब्तला कर चुका? और जिसे अल्लाह गुमराही में मुब्तला कर दे उसके लिये तुम हरगिज़ कभी कोई भलाई का रास्ता नहीं पा सकते। (88)
Then what
happened to you that you divided yourselves in two groups regarding the
hypocrites? ( 53) Allah has turned them upside down because of what they did . Do you wish to
guide a person whom Allah has led astray? And you
can never find a good guide for the one whom Allah has led astray? (88)
ये लोग चाहते यह हैं कि जिस तरह इन्होंने कुफ़्र को अपना लिया है, इसी तरह तुम भी काफ़िर बनकर सब बराबर हो जाओ। लिहाज़ा (ऐ मुसलमानो!) तुम उनमें से किसी को उस वक़्त तक दोस्त न बनाओ जब तक वह अल्लाह के रास्ते में हिजरत न कर ले। चुनॉंचे अगर वे (हिजरत से) मुँह मोड़ें तो उनको पकड़ो और जहाँ भी उन्हें पाओ उन्हें क़त्ल कर दो, और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ, न मददगार। (89)
These people
want that just as they have accepted disbelief, similarly
you too should become disbelievers and become equal. Therefore (O Muslims!) Do not
take any of them as your friend until he migrates in the way of Allah. So if
they turn away (from migration), then catch them and kill them wherever you find
them, and do not take any of them as your friend or helper. (89)
हाँ वे लोग इस हुक्म से बाहर (और अलग) हैं जो किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें जिनके और तुम्हारे बीच कोई (सुलह का) समझौता है, या वे लोग जो तुम्हारे पास इस तरह आयें कि उनके दिल तुम्हारे ख़िलाफ़ जंग करने से भी बेज़ार हों, और अपनी क़ौम के ख़िलाफ़ जंग करने से भी (54) और अगर अल्लाह चाहता तो उन्हें तुम पर मुसल्लत कर देता, तो वे तुम से ज़रूर जंग करते। चुनाँचे अगर वे तुम से किनारा करते हुए तुम से जंग न करें और तुमको अमन की पेशकश कर दें तो अल्लाह ने तुमको उनके ख़िलाफ़ किसी कार्रवाई का कोई हक़ नहीं दिया। (90)
Yes, those
who join a community with whom there is a treaty of peace between you and them
are outside this order, or those who come to you in such a way that
their hearts are disgusted even with fighting against you, and
with fighting against their own people. ( 54) And if Allah had wished, He would have sent them against you , then they would have certainly fought against you. So if they turn away
from you and do not fight against you and offer you peace, then Allah has not
given you any right to take any action against them. (90)
(मुनाफ़िक़ों में) कुछ दूसरे लोग तुम्हें ऐसे मिलेंगे जो यह चाहते हैं कि वे तुम से भी महफ़ूज़ (सुरक्षित और अमन में) रहें और अपनी क़ौम से भी, (मगर) जब कभी उनको फ़ितने की तरफ़ वापस बुलाया जाये वे उसमें औंधे मुँह जा गिरते हैं। (55) चुनाँचे अगर ये लोग तुम से (जंग करने से) अलैहदगी इख़्तियार न करें, और न तुम्हें अमन की पेशकश करें, और न अपने हाथ रोकें तो उनको भी पकड़ो, और जहाँ कहीं उन्हें पाओ उन्हें क़त्ल करो। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ अल्लाह तआला ने तुमको खुला-खुला इख़्तियार दे दिया है। (91)
(Among the
hypocrites) you will find some others who wish to remain safe from you and from
their people, (but) whenever they are called back to the Fitnah (Fitna), they
fall face down in it. ( 55) So if
they do not keep their distance from you , and do not offer you peace , and do
not restrain their hands , then seize them and kill them wherever you find
them. Allah has given you wide authority against such people. (91)
किसी मुसलमान का यह काम नहीं है कि वह किसी दूसरे मुसलमान को क़त्ल करे, हाँ मगर यह कि ग़लती से ऐसा हो जाये (56) और जो शख़्स किसी मुसलमान को ग़लती से क़त्ल कर बैठे तो उस पर फ़र्ज़ है कि वह एक मुसलमान ग़ुलाम आज़ाद करे और दियत (यानी ख़ून-बहा) मक़्तूल के वारिसों को पहुँचाये, या यह कि वे माफ़ कर दें और अगर मक़्तूल (क़त्ल होने वाला) किसी ऐसी क़ौम से ताल्लुक़ रखता हो जो तुम्हारी दुश्मन है, मगर वह ख़ुद मुसलमान हो, तो बस एक मुसलमान ग़ुलाम को आज़ाद करना फ़र्ज़ है (ख़ून-बहा देना वाजिब नहीं)। (57) और अगर मक़्तूल उन लोगों में से हो जो (मुसलमान नहीं, मगर) उनके और तुम्हारे बीच कोई समझौता है तो भी यह फ़र्ज़ है कि ख़ून-बहा (यानी क़त्ल के बदले माल) उसके वारिसों तक पहुँचाया जाये और एक मुसलमान ग़ुलाम को आज़ाद किया जाये। (58) हाँ अगर किसी के पास ग़ुलाम न हो तो उस पर फ़र्ज़ है कि दो महीने तक लगातार रोज़े रखे। यह तौबा का तरीक़ा है जो अल्लाह ने मुक़र्रर किया है, और अल्लाह सब कुछ जानने वाला और हिक्मत वाला है। (92)
It is not
the duty of any Muslim to kill another Muslim, except
if it happens by mistake. (56) And whoever kills a Muslim by mistake, it
is obligatory upon him to free a Muslim slave and to deliver the compensation
(i.e., blood-shed) to the heirs of the murdered, or that
they forgive him. And if the murdered (the one who was killed) belongs to a community
that is your enemy, but he himself is a Muslim, then it
is only obligatory to free a Muslim slave (shedding blood is not obligatory). (57) And if the murdered is one of those who are not Muslims, but
there is an agreement between them and you, then also it is obligatory to deliver
the compensation (i.e., blood-shed) to his heirs and to free a Muslim slave. (58) Yes, if someone does not have a slave, then it is obligatory for him to
fast for two months continuously. This is the way of repentance that Allah has
prescribed, and Allah is All-Knowing and Wise. (92)
और जो शख़्स किसी मुसलमान को जान-बूझकर क़त्ल करे तो उसकी सज़ा जहन्नम है जिसमें वह हमेशा रहेगा, और अल्लाह उस पर ग़ज़ब नाज़िल करेगा और लानत भेजेगा, और अल्लाह ने उसके लिये ज़बरदस्त अ़ज़ाब तैयार कर रखा है। (93)
And whoever
kills a Muslim intentionally, his punishment is Hell, wherein he will abide
forever, and Allah will send down wrath upon him and
curse him, and Allah has prepared for him a terrible
punishment. (93)
ऐ ईमान वालो! जब तुम अल्लाह के रास्ते में सफ़र करो तो तहक़ीक़ से काम लिया करो, और जो शख़्स तुमको सलाम करे तो दुनिया की ज़िन्दगी का सामान हासिल करने की इच्छा में उसको यह न कहो कि तुम मोमिन नहीं हो (59) क्योंकि अल्लाह के पास माले ग़नीमत के बड़े ज़खीरे (भण्डार) हैं। तुम भी तो पहले ऐसे ही थे फिर अल्लाह ने तुम पर फ़ज़्ल (60) किया। लिहाज़ा तहक़ीक़ से काम लो। बेशक जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उस सब से पूरी तरह वाक़िफ़ है। (94)
O you who
believe! When you travel in the way of Allah, do your due diligence. And if
anyone greets you, do not say to him, "You are not a believer" out of desire for the goods of this world, " For with Allah are great treasures of bounty. You were also like that earlier,
then Allah showered His bounty on you. So do your due diligence. Surely Allah
is well aware of all that you do. (94)
जिन मुसलमानों को कोई माज़ूरी लाहिक़ न हो और वे (जिहाद में जाने के बजाय घर में) बैठ रहें (यानी रुक जायें और न जायें) वे अल्लाह के रास्ते में अपने माल व जान से जिहाद करने वालों के बराबर नहीं हैं। जो लोग अपने माल व जान से जिहाद करते हैं उनको अल्लाह ने बैठ रहने वालों पर दर्जे में फ़ज़ीलत दी है। और अल्लाह ने सब से अच्छाई का वायदा कर रखा है। (61) और अल्लाह ने मुजाहिदीन को बैठ रहने वालों पर बड़ी फ़ज़ीलत (रुतबा और बड़ाई) देकर बड़ा सवाब बख़्शा है। (95)
Those
Muslims who do not have any excuse and sit idle (instead of going to Jihad) are
not equal to those who fight Jihad with their wealth and life in the way of
Allah. Those who fight Jihad with their wealth and life, Allah has given them
superiority in rank over those who sit idle. And Allah has promised the best to
all. ( 61) And Allah has given great reward to the Mujahideen
by giving them great superiority (status and greatness) over those who sit
idle. (95)
यानी ख़ास अपने पास से बड़े दर्जे और मग़फ़िरत और रहमत, और अल्लाह बहुत बख़्शने वाला, बड़ा मेहरबान है। (96)
That is,
great status and forgiveness and mercy from Himself, and
Allah is Most Forgiving, Most Merciful. (96)
जिन लोगों ने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया था (62) और उसी हालत में फ़रिश्ते उनकी रूह क़ब्ज़ करने आये तो बोले तुम किस हालत में थे? वे कहने लगे कि हम तो ज़मीन में बेबस बना दिये गये थे। फरिश्तों ने कहा क्या अल्लाह की ज़मीन कुशादा (खुली और फैली हुई) न थी कि तुम उसमें हिजरत कर जाते? लिहाज़ा ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नम है, और वह निहायत बुरा अन्जाम है। (97)
Those who
had wronged their own souls (62) and the angels came to take their souls in that condition,
they asked: What condition were you in? They
said: We were made helpless on the earth. The angels said: Was not the earth of
Allah spacious so that you could have migrated there? So the abode
of such people is Hell, and that is a very bad end. (97)
अलबत्ता वे बेबस मर्द, औरतें और बच्चे (इस अन्जाम से अलग हैं) जो (हिजरत की) कोई तदबीर नहीं कर सकते और न (निकलने का) कोई रास्ता पाते हैं। (98)
But those
helpless men, women and children (are excluded from this end)
who cannot make any arrangements (for migration) and cannot find any way (to escape). (98)
चुनाँचे पूरी उम्मीद है कि अल्लाह उनको माफ़ फ़रमा दे। अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला, बहुत बख़्शने वाला है। (99)
So we hope
that Allah will forgive them. Allah is Most Forgiving, Most Forgiving.
(99)
और जो शख़्स अल्लाह के रास्ते में हिजरत करेगा वह ज़मीन में बहुत जगह और बड़ी गुंजाईश पायेगा और जो शख़्स अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ हिजरत करने के लिये निकले, फिर उसे मौत आ पकड़े, तब भी उसका सवाब अल्लाह के पास तय हो चुका। और अल्लाह बहुत बख़्शने वाला, बड़ा मेहरबान है। (100)
And whoever
migrates in the way of Allah will find in the earth ample space and ample
space. And whoever leaves his home to migrate in the way of Allah and His
prophet and then death overtakes him, his reward
with Allah is already fixed. And Allah is Most Forgiving, Most Merciful.
(100)
और जब तुम ज़मीन में सफ़र करो और तुम्हें इस बात का ख़ौफ़ (डर) हो कि काफ़िर लोग तुम्हें परेशान करेंगे तो तुम पर इस बात में कोई गुनाह नहीं है कि तुम नमाज़ में क़सर (कमी) कर लो। (63) यक़ीनन काफ़िर लोग तुम्हारे खुले दुश्मन हैं। (101)
And when you
travel in the land and you fear that the unbelievers will trouble you, then
there is no sin on you if you miss your prayer. (63) Surely the unbelievers are your open enemies. (101)
और (ऐ पैग़म्बर!) जब तुम उनके बीच मौजूद हो और उन्हें नमाज़ पढ़ाओ तो (दुश्मन से मुक़ाबले के वक़्त उसका तरीक़ा यह है कि) मुसलमानों का एक गिरोह (जमाअ़त और जत्था) तुम्हारे साथ खड़ा हो जाये और अपने हथियार साथ ले ले। फिर जब ये लोग सज्दा कर चुकें तो तुम्हारे पीछे हो जायें और दूसरा गिरोह जिसने अभी तक नमाज़ न पढ़ी हो आगे आ जाये, और वह तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और वह अपने साथ अपने बचाव का सामान और अपने हथियार ले ले। काफ़िर लोग यह चाहते हैं कि तुम अपने हथियारों और अपने सामान से ग़ाफ़िल हो जाओ तो वे एक दम तुम पर टूट पड़ें। और अगर तुम्हें बारिश की वजह से तकलीफ़ हो या तुम बीमार हो तो इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं है कि तुम अपने हथियार उतार कर रख दो, हाँ अपने बचाव का सामान साथ ले लो। बेशक अल्लाह ने काफ़िरों के लिये ज़िल्लत वाला अ़ज़ाब तैयार कर रखा है। (102)
And when you
are present among them and lead them in prayer, then a group of Muslims should
stand with you and take their weapons with them. Then when they have finished
prostrating, they should stand behind you and the other group which has not yet
prayed should come forward and pray with you, and they
should take their weapons and their defense equipment with them. The disbelievers
want that you become careless about your weapons and your equipment so that
they can attack you at once. And if you are troubled by rain or you are sick,
then there is no sin on you that you take off your weapons and keep them aside, but
take your weapons with you. Surely Allah has prepared a humiliating punishment
for the disbelievers. (102)
फिर जब तुम नमाज़ पूरी कर चुको तो अल्लाह को (हर हालत में) याद करते रहो, खड़े भी, बैठे भी और लेटे हुए भी। (64) फिर जब तुम्हें (दुश्मन की तरफ़ से) इत्मीनान हासिल हो जाये तो नमाज़ क़ायदे के मुताबिक़ पढ़ो। बेशक नमाज़ मुसलमानों के ज़िम्मे एक ऐसा फरीज़ा है जो वक़्त का पाबन्द है। (103)
Then when
you have completed your prayer, remember Allah (in all circumstances), whether
standing, sitting or lying down. (64) Then when you get some peace (from the enemy), then pray according to the
rules. Indeed, prayer is a duty on Muslims which is punctual. (103)
और तुम उन लोगों (यानी काफ़िर दुश्मन) का पीछा करने में कमज़ोरी न दिखाओ, अगर तुम्हें तकलीफ़ पहुँची है तो उनको भी इसी तरह तकलीफ़ पहुँची है (65) जैसे तुम्हें पहुँची है, और तुम अल्लाह से उस बात के उम्मीदवार हो जिसके वे उम्मीदवार नहीं। और अल्लाह इल्म का भी मालिक है, हिक्मत का भी मालिक है (104)
And do not
be weak in pursuing them (i.e., the infidel enemies). If you have
been harmed, they have also been harmed in the same way (65) as you have been harmed. And you expect from Allah that which they do
not expect. And Allah is the Possessor of knowledge and of wisdom. (104)
बेशक हमने हक़ पर आधारित किताब तुम पर इसलिए उतारी है ताकि तुम लोगों के बीच उस तरीक़े के मुताबिक़ फ़ैसला करो जो अल्लाह ने तुमको समझा दिया है, और तुम ख़यानत करने वालों के तरफ़दार न बनो। (105)
Surely We
have sent down to you the Book of Truth so that you may judge between people
according to the method which Allah has taught you, and
that you may not be a follower of the wicked. (105)
और अल्लाह से मग़फ़िरत तलब करो, बेशक अल्लाह बहुत बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है। (106)
And seek
forgiveness from Allah, surely Allah is Most Forgiving, Most Merciful.
(106)
और किसी विवाद और झगड़े में उन लोगों की वकालत न करना जो ख़ुद अपनी जानों से ख़ियानत करते हैं। अल्लाह किसी भी ख़ियानत करने वाले गुनाहगार को पसन्द नहीं करता। (107)
And do not
advocate in any dispute or conflict the side of those who are treacherous about
their own lives. Allah does not like any treacherous sinner. (107)
ये लोगों से तो शर्माते हैं और अल्लाह से नहीं शर्माते, हालाँकि वह उस वक़्त भी उनके पास होता है जब वे रातों को ऐसी बातें करते हैं जो अल्लाह को पसन्द नहीं। और जो कुछ ये कर रहे हैं अल्लाह ने उस सब का इहाता कर रखा है (यानी हर चीज़ रिकार्ड है)। (108)
They are ashamed
of people and are not ashamed of Allah, although
He is with them when they talk at night about things that Allah does not like. And
Allah has recorded everything they do. (108)
अरे तुम्हारी बिसात यही तो है कि तुम ने दुनिया की ज़िन्दगी में लोगों से झगड़कर उन (ख़ियानत करने वालों) की हिमायत कर ली! भला इसके बाद क़ियामत के दिन अल्लाह से झगड़ कर कौन उनकी हिमायत करेगा? या कौन उनका वकील बनेगा? (109)
Oh, your
status is such that you quarrel with people in this world and support them.
Then who will quarrel with Allah on the Day of Resurrection and support them? Or who
will be their advocate? (109)
और जो शख़्स कोई बुरा काम कर गुज़रे या अपनी जान पर ज़ुल्म कर बैठे, फिर अल्लाह से माफ़ी माँग ले तो वह अल्लाह को बहुत बख़्शने वाला, बड़ा मेहरबान पायेगा। (110)
And whoever
commits an evil deed or wrongs his own soul and then asks forgiveness from Allah, he will find Allah Most Forgiving, Most
Merciful. (110)
और जो शख़्स कोई गुनाह कमाये तो वह उस कमाई से ख़ुद अपने आपको नुक़सान पहुँचाता है। और अल्लाह पूरा इल्म भी रखता है, हिक्मत का भी मालिक है। (111)
And whoever
earns sinful things, he himself harms himself by that income. And Allah is
All-Knowing and All-Wise. (111)
और अगर कोई शख़्स किसी ग़लती या गुनाह को करे, फिर उसका इल्ज़ाम किसी बेगुनाह के जिम्मे लगा दे तो वह बड़ा भारी बोहतान और खुला गुनाह अपने ऊपर लाद लेता है। (112)
And if a
person commits a mistake or a sin and then blames it on an innocent person, he brings
a grave sin and an open sin upon himself. (112)
और (ऐ पैग़म्बर!) अगर अल्लाह का फ़ज़्ल और रहमत तुम्हारे शामिले हाल न होती तो उनमें से एक गिरोह ने तो तुमको सीधी राह से भटकाने का इरादा कर ही लिया था (67) और (वास्तव में) ये अपने सिवा किसी को नहीं भटका रहे हैं, और ये तुमको ज़रा भी नुक़सान नहीं पहुँचा पायेंगे। अल्लाह ने तुम पर किताब और हिक्मत नाज़िल की है और तुमको उन बातों का इल्म दिया है जो तुम नहीं जानते थे, और तुम पर अल्लाह का फ़ज़्ल हमेशा बहुत ज़्यादा रहा है। (113)
And (O
Prophet!) Had it not been for the grace of Allah and His mercy on you, a group
of them had already intended to lead you astray from the straight path. (67) And (indeed) they are not leading astray except themselves, and
they will not be able to harm you at all. Allah has sent down the Book and
wisdom to you and has made you aware of things that you did not know, and the
grace of Allah has always been great upon you. (113)
लोगों की बहुत सी गोपनीय गुफ़्तगू और कान में बातें करने में कोई ख़ैर नहीं होती, हाँ मगर यह कि कोई शख़्स सदक़े का या किसी नेकी का या लोगों के दरमियान इस्लाह (सुधार) का हुक्म दे। और जो शख़्स अल्लाह की रज़ा हासिल करने के लिये ऐसा करेगा हम उसको ज़बरदस्त सवाब अ़ता करेंगे। (114)
There is no
good in eavesdropping or whispering in the ears of people, except that
one who commands charity or good deeds or reforms among people. And whoever
does this for the sake of Allah's pleasure, we will reward him with a great
reward. (114)
और जो शख़्स अपने सामने हिदायत स्पष्ट होने के बाद भी रसूल की मुख़ालफ़त करे और मोमिनों के रास्ते के सिवा किसी और रास्ते की पैरवी करे, उसको हम उसी राह के हवाले कर देंगे जो उसने ख़ुद अपनाई है, और उसे दोज़ख़ में झोंकेंगे, और वह बहुत बुरा ठिकाना है। (115)
And whoever
opposes the Prophet after the guidance has become clear to him and follows a
path other than the path of the believers, we will
make him follow the path he has chosen and We will throw him into Hell, and that is a terrible abode. (115)
बेशक अल्लाह इस बात को नहीं बख़्शता कि उसके साथ किसी को शरीक ठहराया जाये, और इससे कमतर हर गुनाह की जिसके लिये चाहता है बख़्शिश कर देता है (69) और जो शख़्स अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराता है वह सही रास्ते से भटक कर बहुत दूर जा गिरता है। (116)
Surely Allah
does not forgive anyone who associates partners with Him, and He
forgives every sin for whomsoever He wishes. (69) And whoever associates partners with Allah has strayed far from the right
path. (116)
अल्लाह को छोड़कर जिन से ये दुआयें माँग रहे हैं वे सिर्फ़ चन्द ज़नानियाँ हैं, (70) और जिसको ये पुकार रहे हैं वह उस सरकश शैतान के सिवा कोई नहीं। (117)
Those whom
they pray to besides Allah are nothing but a few women, (70) and those whom they invoke are none other than the wicked Satan. (117)
जिस पर अल्लाह ने फटकार डाल रखी है, और उसने (अल्लाह से) यह कह रखा कि मैं तेरे बन्दों में से एक तयशुदा हिस्सा लेकर रहूँगा।(118)
On whom
Allah has sent down a curse, and he has said (to Allah) that I will take
a fixed share from Your servants. (118)
और मैं उन्हें सही रास्ते से भटका कर रहूँगा, और उन्हें ख़ूब आरज़ुएँ दिलाऊँगा, और उन्हें हुक्म दूँगा तो वे पशुओं के कान चीर डालेंगे, और उन्हें हुक्म दूँगा तो वे अल्लाह की तख़्लीक़ (पैदाईश और कारीगरी) में तब्दीली पैदा करेंगे। और जो शख़्स अल्लाह के बजाय शैतान को दोस्त बनाये उसने खुले-खुले घाटे का सौदा किया। (119)
And I will
lead them astray from the right path and I will give them many desires and I will command them and they will tear the ears
of animals and I will command them and they will change
the creation of Allah. And whoever makes Satan his friend instead of Allah has
committed a great loss. (119)
वह तो उनसे वायदे करता और उन्हें आरज़ूओं (तमन्नाओं और इच्छाओं) में मुब्तला करता (फाँसता) है, जबकि (हक़ीक़त यह है कि) शैतान उनसे जो भी वायदा करता है, वह धोखे के सिवा कुछ नहीं। (120)
He makes
promises to them and entangles them in desires, but whatever
Satan promises them is nothing but deception. (120)
उन सब का ठिकाना जहन्नम है और उनको उससे बचने के लिये कोई भागने का रास्ता नहीं मिलेगा। (121)
Their abode
is Hell and they will not find any way to escape from it. (121)
और जो लोग ईमान लाये हैं और उन्होंने नेक अ़मल किये हैं। हम उनको ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, ये उनमें हमेशा- हमेशा रहेंगे। यह अल्लाह का सच्चा वायदा है, और अल्लाह से ज़्यादा बात का सच्चा कौन हो सकता है? (122)
And those
who believe and do righteous deeds, we will admit them into Gardens beneath
which rivers flow, and they will abide therein forever. This is
the true promise of Allah, and who can be more truthful than Allah? (122)
न तुम्हारी तमन्नायें (जन्नत में जाने के लिये) काफ़ी हैं, न अहले किताब की आरज़ुएँ जो भी बुरा अ़मल करेगा उसकी सज़ा पायेगा, और अल्लाह के सिवा उसे अपना कोई दोस्त व मददगार नहीं मिलेगा। (123)
Neither your
wishes nor the wishes of the People of the Book are sufficient. Whoever
commits evil deeds will be punished for it and he will find no friend or helper except Allah. (123)
और जो शख़्स नेक काम करेगा, चाहे व मर्द हो या औरत बशर्तेकि मोमिन हो, तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे, और खजूर की गुठली के शिगाफ़ (फटे हुए हिस्से) के बराबर भी उन पर ज़ुल्म नहीं होगा। (124)
And whoever
does good deeds, be it a man or a woman, provided
he is a believer, will enter Paradise, and
they will not be wronged even to the extent of a crack in a date's kernel. (124)
और उससे बेहतर किसका दीन होगा जिसने अपने चेहरे (समेत सारे वजूद) को अल्लाह के आगे झुका दिया हो, जबकि वह नेकी का आदी भी हो, और जिसने सीधे सच्चे इब्राहीम (अ़लैहिस्सलाम) के दीन की पैरवी की हो। और (यह मालूम ही है कि) अल्लाह ने (हज़रत) इब्राहीम को अपना ख़ास दोस्त बना लिया था (125)
And whose
religion is better than that of him who has bowed his face (including his
entire body) before Allah, and who is a follower of good deeds, and who follows the religion of the upright Ibrahim (peace be upon him). And
Allah had chosen Ibrahim as His special friend. (125)
आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है अल्लाह ही का है, और अल्लाह ने हर चीज़ को (अपनी क़ुदरत के) घेरे में लिया हुआ है। (126)
All that is
in the heavens and on the earth belongs to Allah, and He
has encompassed everything. (126)
और (ऐ पैग़म्बर!) लोग तुमसे औरतों के बारे में शरीअ़त का हुक्म पूछते हैं (73) कह दो कि अल्लाह तुमको उनके बारे में हुक्म बताता है, और इस किताब (यानी क़ुरआन) की जो आयतें तुमको पढ़कर सुनाई जाती हैं वे भी उन यतीम औरतों के बारे में (शरई हुक्म बताती हैं) जिनको तुम उनका मुक़र्रर शुदा (निर्धारित) हक़ नहीं देते, और उनसे निकाह करना भी चाहते हो, (74) तथा कमज़ोर बच्चों के बारे में भी (हुक्म बताती हैं) और यह ताकीद करती हैं कि तुम यतीमों की ख़ातिर इन्साफ़ क़ायम करो। और तुम जो भलाई का काम करोगे, अल्लाह को उसका पूरा-पूरा इल्म है। (127)
And (O
Prophet!) People ask you about the ruling of the Shari'ah regarding women. (73) Say: Allah informs you about the ruling regarding them, and the
verses of this Book (i.e., the Qur'an) which are recited to you also inform about
those orphan women to whom you do not give their due rights, and you
also want to marry them. (74) And they also advise you to establish justice
for orphans. And whatever good you do; Allah
is fully aware of it. (127)
और अगर किसी औरत को अपने शौहर की तरफ़ से ज़्यादती या बेज़ारी (बेरुख़ी व नफ़रत) का अन्देशा हो तो उन मियाँ-बीवी के लिये इसमें कोई हर्ज नहीं है कि वे आपस की सहमति से किसी क़िस्म की सुलह कर लें। (75) और सुलह कर लेना बेहतर है। और इनसानों के दिल में (कुछ न कुछ) लालच का माद्दा तो रख ही दिया गया है। (76) और अगर एहसान और तक़वा (परहेज़गारी) से काम लो तो जो कुछ तुम करोगे अल्लाह उससे पूरी तरह वाक़िफ़ है। (128)
And if a
woman fears that her husband will be cruel or indifferent, then there is no
harm in it for the husband and wife to make some kind of peace by mutual
consent. (75) And peace is better. And the desire to make peace has already been placed
in the hearts of humans. (76) And if you act with kindness and piety, then
Allah is well aware of what you do. (128)
और औरतों के बीच मुकम्मल बराबरी रखना तो तुम्हारे बस में नहीं चाहे तुम ऐसा चाहते (77) भी हो, अलबत्ता किसी एक तरफ़ पूरे -पूरे न झुक जाओ कि दूसरी को ऐसा बनाकर छोड़ दो जैसे कोई बीच में लटकी हुई चीज़। और अगर तुम इस्लाह (सुधार) और तक़वा (अल्लाह के डर और परहेज़गारी) से काम लोगे तो यक़ीन रखो कि अल्लाह बहुत बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है। (129)
And it is
not in your power to maintain complete equality between women, even if you
desire it (77). But do not lean towards one side completely and leave the other as if it were
suspended in the middle. And if you work with reform and piety, then be assured
that Allah is Most Forgiving, Most Merciful. (129)
और अगर दोनों जुदा (अलग) हो ही जायें तो अल्लाह (क़ुदरत और रहमत की) वुस्अ़त से दोनों को (एक दूसरे की हाजत से) बेनियाज़ (बेपरवाह) कर देगा। (78) अल्लाह बड़ी वुस्अ़तों वाला बड़ा हिक्मत वाला है। (130)
And if they
separate, Allah will make them independent of each other by the power of His
mercy. (78) Allah is the most powerful and wise. (130)
और आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है अल्लाह ही का है। हम ने तुम से पहले अहले किताब (यानी यहूदियों व ईसाईयों) को भी और तुम्हें भी यही ताकीद की है कि अल्लाह से डरो, और अगर तुम कुफ़्र अपनाओगे तो (अल्लाह का क्या नुक़सान है? क्योंकि) आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है अल्लाह ही का है, और अल्लाह हर एक से बेनियाज़ और अपनी ज़ात से ही तारीफ़ के लायक़ है। (131)
And whatever
is in the heavens and the earth belongs to Allah. We have warned the People of
the Book (i.e., Jews and Christians) before you and you as well to fear Allah, and if
you adopt disbelief then (what harm will it do to Allah? Because)
whatever is in the heavens and the earth belongs to Allah, and
Allah is independent of anyone and is worthy of praise by Himself. (131)
और आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है अल्लाह ही का है, और काम बनाने के लिये अल्लाह ही काफ़ी है। (132)
And all that
is in the heavens and on the earth belongs to Allah, and all
that is in heaven is sufficient. (132)
अगर वह चाहे तो ऐ लोगो! तुम सब को (दुनिया से) ले जाये और दूसरों को (तुम्हारी जगह यहाँ) ले आये। अल्लाह इस बात की पूरी क़ुदरत रखता है। (133)
If He
wishes, He can take you all (from this world) and bring others (in your place).
Allah is all-powerful in this matter. (133)
जो शख़्स (सिर्फ़) दुनिया का सवाब चाहता हो (उसे याद रखना चाहिए कि) अल्लाह के पास दुनिया और आख़िरत दोनों का सवाब मौजूद है। (80) अल्लाह हर बात को सुनता और हर चीज़ को जानता है। (134)
Whoever
seeks (only) worldly rewards (should
remember that) Allah has the reward of both this world and the Hereafter. (80) Allah hears everything and knows everything. (134)
ऐ ईमान वालो! इन्साफ़ क़ायम करने वाले बनो, अल्लाह की ख़ातिर गवाही देने वाले, चाहे वह गवाही तुम्हारे अपने ख़िलाफ़ पड़ती हो, या माँ-बाप और क़रीबी रिश्तेदारों के ख़िलाफ़। वह शख़्स (जिसके ख़िलाफ़ गवाही देने का हुक्म दिया जा रहा है) चाहे अमीर हो या ग़रीब, अल्लाह दोनों क़िस्म के लोगों का (तुम से) ज़्यादा ख़ैरख़्वाह (भला चाहने वाला) है, लिहाज़ा ऐसी नफ़्सानी इच्छा के पीछे न चलना जो तुम्हें इन्साफ़ करने से रोकती हो। और अगर तुम तोड़-मरोड़ करोगे (यानी ग़लत गवाही दोगे) या (सच्ची गवाही देने से) किनारा करोगे तो (याद रखना कि) अल्लाह तुम्हारे तमाम कामों से पूरी तरह बा-ख़बर (जानकार) है। (135)
O you who
believe! Be those who establish justice, testify
for the sake of Allah, whether the testimony is against yourselves, or against
your parents and close relatives. Whether the person (against whom you are
being ordered to testify) is rich or poor, Allah
is more well-wisher of both kinds of people (than you), so do
not follow any selfish desire that prevents you from doing justice. And if you
distort (i.e., give false testimony) or turn away (from giving true testimony),
then (remember that) Allah is well aware of all your actions. (135)
ऐ ईमान वालो! अल्लाह पर ईमान रखो और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो अल्लाह ने अपने रसूल पर उतारी है, और उस किताब पर जो उसने पहले उतारी थी। और जो शख़्स अल्लाह का, उसके फ़रिश्तों का, उसकी किताबों का, उसके रसूलों का और आख़िरत के दिन का इनकार करे वह भटक कर गुमराही में बहुत दूर जा पड़ा है। (136)
O you who
believe! Believe in Allah and His Messenger and the Book which Allah has
revealed to His Messenger and the Book which He revealed before. And whoever
denies in Allah, His angels, His Books, His
Messengers and the Last Day has strayed far into error. (136)
जो लोग ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते ही चले गये, अल्लाह उनको बख़्शने वाला नहीं है, और न उन्हें रास्ते पर लाने वाला है। (137)
Those who
believed and then became unbelievers, then
believed and then became unbelievers, then continued
to go on increasing in their unbelief, Allah
will not forgive them, nor will He guide them. (137)
मुनाफ़िक़ों को यह ख़ुशख़बरी सुना दो कि उनके लिये एक दुख देने वाला अ़ज़ाब तैयार है। (138)
Give good
news to the hypocrites: a painful punishment is prepared for them. (138)
वे मुनाफ़िक़ जो मुसलमानों के बजाय काफ़िरों को दोस्त बनाते हैं। क्या वे उनके पास इज़्ज़त तलाश कर रहे हैं? हालाँकि इज़्ज़त तो सारी की सारी अल्लाह ही की है। (139)
Those
hypocrites who choose unbelievers as their friends instead of Muslims. Do they
seek honour from them? But all honour belongs to Allah. (139)
और उसने किताब में तुम पर यह हुक्म नाज़िल किया है कि जब तुम अल्लाह की आयतों को सुनो कि उनका इनकार किया जा रहा है और उनका मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है तो ऐसे लोगों के साथ उस वक़्त तक मत बैठो जब तक वे किसी और बात में मशग़ूल न हो जायें, वरना तुम भी उन्हीं जैसे हो जाओगे। यक़ीन रखो कि अल्लाह तमाम मुनाफ़िक़ों और काफ़िरों को जहन्नम में इकट्ठा करने वाला है। (140)
And He has
revealed to you in the Book the command: When you hear the verses of Allah
being denied and ridiculed, do not sit with such people until they are busy
talking about something else, otherwise you will be like them. Believe that
Allah will gather all the hypocrites and unbelievers in Hell. (140)
(ऐ मुसलमानो!) ये वे लोग हैं जो तुम्हारे (अन्जाम के) इन्तिज़ार में बैठे रहते हैं। चुनाँचे अगर तुम्हें अल्लाह की तरफ़ से फ़तह मिले तो (तुम से) कहते हैं कि क्या हम तुम्हारे साथ न थे? और अगर काफ़िरों को (फ़तह) नसीब हो तो (उनसे) कहते हैं कि क्या हमने तुम पर क़ाबू नहीं पा लिया था? और क्या (इसके बावजूद) हमने तुम्हें मुसलमानों से नहीं बचाया? (82) बस अब तो अल्लाह ही क़ियामत के दिन तुम्हारे और उनके बीच फै़सला करेगा, और अल्लाह काफ़िरों के लिये मुसलमानों पर ग़ालिब आने का हरगिज़ कोई रास्ता नहीं रखेगा। (141)
(O Muslims!) These are the people who wait
for your (end). So if you get victory from Allah, they say (to you) were we not
with you? And if victory is attained by the unbelievers,
they say (to them) had we not overcome you? And did
we not save you from the Muslims? (82) Now only Allah will judge between you and them
on the Day of Resurrection, and Allah will never keep any way for the
unbelievers to prevail over the Muslims. (141)
ये मुनाफ़िक़ अल्लाह के साथ धोखेबाज़ी करते हैं, हालाँकि अल्लाह ने इन्हें धोखे में डाल रखा है। (83) और जब ये लोग नमाज़ के लिये खड़े होते हैं तो कस्मसाते हुए खड़े होते हैं, लोगों के सामने दिखावा करते हैं, और अल्लाह को थोड़ा ही याद करते हैं। (142)
These
hypocrites deceive Allah, but Allah has deceived them. (83) And when they stand up for prayer, they stand swearing, they
show off before the people and remember Allah only a little. (142)
ये कुफ़्र व ईमान के बीच डाँवाडोल (हिचकोले खा रहे) हैं। न पूरे तौर पर इन (मुसलमानों) की तरफ़ हैं, न उन (काफ़िरों) की तरफ़। और जिसे अल्लाह गुमराही में डाल दे तुम्हें उसके लिये हिदायत पर आने का कोई रास्ता हरगिज़ नहीं मिल सकता। (143)
They are
wavering between disbelief and faith. They are neither completely on the side
of these (Muslims) nor on the side of those (unbelievers). And whomsoever
Allah leads astray, you will never find a way for him to come to the right
path. (143)
ऐ ईमान वालो! मुसलमानों को छोड़कर काफ़िरों को दोस्त मत बनाओ। क्या तुम यह चाहते हो कि अल्लाह के पास अपने ख़िलाफ़ (यानी अपने अ़ज़ाब के हक़दार होने की) एक खुली-खुली वजह पैदा कर दो? (144)
O you who
believe! Do not take unbelievers as friends except Muslims. Do you wish to
create a clear reason before Allah against yourselves (i.e., that you deserve
punishment)? (144)
यक़ीन जानो कि मुनाफ़िक़ लोग जहन्नम के सबसे निचले तब्क़े में होंगे, और उनके लिये तुम कोई मददगार नहीं पाओगे। (145)
Be sure that
the hypocrites will be in the lowest part of Hell, and you
will not find any helper for them. (145)
अलबत्ता जो लोग तौबा कर लेंगे, अपनी इस्लाह (सुधार) कर लेंगे, अल्लाह का सहारा मज़बूती से थाम लेंगे और अपने दीन को ख़ालिस अल्लाह के लिये बना लेंगे तो ऐसे लोग मोमिनों के साथ शामिल हो जायेंगे, और अल्लाह मोमिनों को ज़रूर बहुत बड़ा अज्र अ़ता करेगा। (146)
But those
who repent, reform themselves, hold
fast to Allah and make their religion pure for Allah, they will join the group
of believers, and Allah will surely bestow a great reward
on the believers. (146)
अगर तुम शुक्रगुज़ार बनो और (सही मायने में) ईमान ले आओ तो अल्लाह तुम्हें अ़ज़ाब देकर आख़िर क्या करेगा? अल्लाह बड़ा क़द्रदान है (और) सब के हालात का पूरी तरह इल्म रखता है। (147)
If you are
grateful and believe, what will Allah do by punishing you? Allah is
most appreciative and All-Knowing. (147)
अल्लाह इस बात को पसन्द नहीं करता कि किसी की बुराई खुले तौर पर ज़बान पर (84) लाई जाये, हाँ मगर यह कि किसी पर ज़ुल्म हुआ हो, और अल्लाह सब कुछ सुनता, हर बात जानता है। (148)
spoken ill of
openly (84), except that someone is wronged; and
Allah is All-Hearing and All-Knowing. (148)
अगर तुम कोई नेक काम खुले तौर पर करो या छुपे तौर पर करो, या किसी बुराई को माफ़ कर दो, तो (बेहतर है, क्योंकि) अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला है। (अगरचे सज़ा देने पर) पूरी क़ुदरत रखता है। (149)
If you do a
good deed openly or secretly, or forgive an evil deed, it is better, because
Allah is most forgiving. He is all-powerful (even when it comes to punishment).
(149)
जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों का इनकार करते हैं और अल्लाह और उसके रसूलों के दरमियान फ़र्क़ करते हुए कहते हैं कि कुछ (रसूलों) पर तो हम ईमान लाते हैं और कुछ का इनकार करते हैं, और (इस तरह) वे चाहते हैं कि (कुफ़्र और ईमान के बीच) एक बीच की राह निकाल लें, (150)
Those who
deny Allah and His Messengers and make distinctions between them, saying, "We believe in some and we reject some, " and seek to find a middle way, (150)
ऐसे लोग सही मायने में काफ़िर हैं और काफ़िरों के लिये हमने ज़िल्लत भरा अ़जाब तैयार कर रखा है। (151)
Such people
are truly disbelievers, and for the disbelievers We have prepared a humiliating
punishment. (151)
और जो लोग अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लायें और उनमें से किसी के दरमियान फ़र्क़ न करें, तो अल्लाह ऐसे लोगों को उनके अज्र अ़ता करेगा, और अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला, बड़ा मेहरबान है। (152)
And those
who believe in Allah and His Messengers and do not make any distinction between
any of them, Allah will give them their reward, and
Allah is Most Forgiving, Most Merciful. (152)
(ऐ पैग़म्बर!) अहले किताब तुम से (जो) मुतालबा कर रहे हैं कि तुम उन पर आसमान से कोई किताब नाज़िल करवाओ, तो (यह कोई नई बात नहीं, क्योंकि) ये लोग तो (हज़रत) मूसा से इससे भी बड़ा मुतालबा कर चुके हैं। चुनाँचे इन्होंने (हज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम से) कहा था कि हमें अल्लाह खुली आँखों दिखाओ, चुनाँचे उनकी सरकशी की वजह से उनको बिजली के कड़के ने आ पकड़ा था, फिर उनके पास जो खुली-खुली निशानियाँ आयीं उनके बाद भी उन्होंने बछड़े को माबूद बना लिया था। इस पर भी हमने उन्हें माफ़ कर दिया और हमने मूसा को खुला इक़्तिदार (ग़लबा) और ताक़त अ़ता की। (153)
(O Prophet!)
The people of the Book are demanding from you that you should send down a book
for them from the sky, so (this is nothing new, because) these people had demanded
a greater thing from (Hazrat) Moses. So they had said (to Hazrat Moses) that
Allah show us with open eyes, so due to their disobedience they were struck by lightning,
then despite the clear signs that came to them they made the calf their god.
Despite this We forgave them and We gave Moses open authority and power. (153)
और हमने तूर पहाड़ को उन पर बुलन्द करके उनसे अ़हद लिया था, और हमने उनसे कहा था कि (शहर के) दरवाज़े में झुके हुए सरों के साथ दाख़िल होना, और उनसे कहा था कि तुम शनिवार के दिन के बारे में हद से न गुज़रना, (86) और हमने उनसे बहुत पक्का अ़हद लिया था। (154)
And We had
taken a covenant from them by raising Mount Tur above them, and We
had told them to enter the gates with their heads bowed down, and We
had told them: "Do not exceed the limits regarding the
Sabbath day." (86) And We had taken a covenant from them that was very firm. (154)
फिर उनके साथ जो कुछ हुआ वह इसलिये कि उन्होंने अपना अ़हद तोड़ा, अल्लाह की आयतों का इनकार किया, अम्बिया (नबियों) को नाहक़ क़त्ल किया, और यह कहा कि हमारे दिलों पर ग़िलाफ़ (पर्दा) चढ़ा हुआ है। (87) हालाँकि हक़ीक़त यह है कि उनके कुफ़्र की वजह से अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी है, इसलिये वे थोड़ी सी बातों के सिवा किसी बात पर ईमान नहीं लाते। (155)
Then what
happened to them was because they broke their covenant, rejected
the verses of Allah, killed the prophets without any reason and said, "Our hearts are veiled." ( 87) But the truth is that Allah has sealed their hearts because of their
disbelief , so they do not believe in anything except a
few things. (155)
और इसलिये कि उन्होंने कुफ़्र का रास्ता इख़्तियार किया, और (हज़रत) मरियम पर बड़े भारी बोहतान की बात कही। (156)
And because
they followed the path of disbelief and spoke a great sin against Maryam. (156)
और यह कहा कि हमने अल्लाह के रसूल ईसा इब्ने मरियम (अ़लैहिस्सलाम) को क़त्ल कर दिया था हालाँकि न इन्होंने ईसा (अ़लैहिस्सलाम) को क़त्ल किया था, न उन्हें सूली दे पाये थे, बल्कि उन्हें भ्रम और धोखा हो गया था। (90) और हक़ीक़त यह है कि जिन लोगों ने इस बारे में इख़्तिलाफ़ (मतभेद और झगड़ा) किया है वे इस सिलसिले में शक का शिकार हैं, (91) और यह बिल्कुल यक़ीनी बात है कि वे ईसा (अ़लैहिस्सलाम) को क़त्ल नहीं कर पाये (157)
And they
said: We killed Allah's Messenger (peace be upon him) Isa ibn Maryam (peace be upon him) but they neither
killed him nor crucified him, but they were mistaken. ( 90) And the truth is that those who differ
about this are doubtful in this matter . (91) And it is certain that they could not kill Isa (peace be upon him). (157)
बल्कि अल्लाह ने उन्हें अपने पास उठा लिया था, और अल्लाह बड़ा इक़्तिदार (ताक़त व इख़्तियार) वाला, बड़ा हिक्मत वाला है। (158)
Rather,
Allah had raised them up to Himself, and
Allah is All-Mighty, All-Wise. (158)
और अहले किताब में से कोई ऐसा नहीं जो अपनी मौत से पहले ज़रूर लाज़िमी तौर पर ईसा (अ़लैहिस्सलाम) पर ईमान न लाये, और क़ियामत के दिन वह उन लोगों के ख़िलाफ़ गवाह बनेंगे। (159)
And there is
no one among the People of the Book who will not believe in Jesus before his death, and on
the Day of Resurrection he will be a witness against them. (159)
ग़र्ज़ कि यहूदियों की संगीन ज़्यादती की वजह से हमने उन पर वो पाकीज़ा चीज़ें हराम कर दी जो पहले उनके लिये हलाल की गयी थीं, (93) और इसलिये कि वे अक्सर लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते थे। (160)
In short,
because of the Jews' excesses, we made forbidden to them those pure things
which had previously been made lawful for them, (93) and because they often hindered people from the way of Allah. (160)
और सूद लिया करते थे हालाँकि उन्हें इससे मना किया गया था, और लोगों के माल नाहक़ तरीक़े से खाते थे। और उनमें से जो लोग काफ़िर हैं, उनके लिये हमने एक दर्दनाक अ़ज़ाब तैयार कर रखा है। (161)
And they used
to take interest although it was forbidden to them, and
used to devour people's wealth unjustly. And for those who are disbelievers
among them, we have prepared a painful punishment. (161)
अलबत्ता उन (बनी इस्राईल) में से जो लोग इल्म में पक्के हैं और मोमिन हैं, वे इस (कलाम) पर भी ईमान रखते हैं जो (ऐ पैग़म्बर!) तुम पर नाज़िल किया गया और उस पर भी जो तुम से पहले नाज़िल किया गया था, और क़ाबिले तारीफ़ हैं वे लोग जो नमाज़ क़ायम करने वाले हैं, ज़कात देने वाले हैं और अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखने वाले हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें हम बड़ा अज्र अ़ता करेंगे। (162)
But those
among them (Bani Israel) who are firm in knowledge and are believers, they believe
in what has been revealed to you (O Prophet!) and in what was revealed before you. And praiseworthy
are those who establish prayer, give Zakat and believe in Allah and the Last
Day. These are they on whom We will bestow a great reward. (162)
(ऐ पैग़म्बर!) हमने तुम्हारे पास इसी तरह 'वही' भेजी है जैसे नूह (अ़लैहिस्सलाम) और उनके बाद दूसरे नबियों के पास भेजी थी, और हमने (हज़रत) इब्राहीम, (हज़रत) इस्माईल, (हज़रत) इस्हाक़, (हज़रत) याक़ूब और उनकी औलाद के पास, और (हज़रत) ईसा, (हज़रत) अय्यूब, (हज़रत) यूनुस, (हज़रत) हारून और (हज़रत) सुलैमान (अ़लैहिमुस्सलाम) के पास भी वही भेजी थी, और हमने (हज़रत) दाऊद को ज़बूर अ़ता की थी। (163)
(O Prophet!)
We have sent revelation to you just as We sent revelation to Nuh (peace be upon
him) and other prophets after him , and We sent revelation to Ibrahim (peace be
upon him) , Isma'il (peace be upon him), Ishaq (peace be upon him), Ya'qub (peace be upon him) and their progeny , and
We also sent revelation to Isa ( peace be upon him), Ayyub ( peace be upon
him), Yunus ( peace be upon him), Haroon (peace be upon him) and Solomon (peace be
upon him) , and We gave the Psalms to Dawood (peace be upon him). (163)
और बहुत से रसूल हैं जिनके वाक़िअ़ात हमने तुम्हें सुनाये हैं, और बहुत से रसूल ऐसे हैं कि हमने उनके वाक़िआत तुम्हें पहले नहीं सुनाये। और (हज़रत) मूसा से तो अल्लाह ने डायरेक्ट कलाम किया। (164)
And there
are many messengers whose stories We have narrated to you, and there
are many messengers whose stories We have not narrated to you before. And Allah
spoke directly to Moses. (164)
ये सब रसूल वे थे जो (सवाब की) ख़ुशख़बरी सुनाने और (दोज़ख़ से) डराने वाले बनाकर भेजे गये थे, ताकि उन रसूलों के आ जाने के बाद लोगों के पास अल्लाह के सामने कोई उज़्र बाक़ी न रहे, और अल्लाह का इक़्तिदार (ताक़त व हुकूमत) भी कामिल है, हिक्मत भी कामिल है। (165)
All these
messengers were those who were sent as bringers of good news and warners (of
Hell), so that after the arrival of these messengers,
people may have no excuse before Allah. And
Allah's power is perfect and His wisdom is perfect. (165)
(ये काफ़िर लोग मानें या न माने) लेकिन अल्लाह ने जो कुछ तुम पर नाज़िल किया है उसके बारे में वह ख़ुद गवाही देता है कि उसने उसे अपने इल्म से नाज़िल किया है, और फ़रिश्ते भी गवाही देते हैं, और (यूँ तो) अल्लाह की गवाहीही बिल्कुल काफ़ी है। (166)
(These unbelievers
may or may not believe) But Allah Himself testifies about whatever He has
revealed to you that He has revealed it with His knowledge, and the angels also
testify, and (in fact) the testimony of Allah is sufficient. (166)
यक़ीन जानो कि जिन लोगों ने कुफ़्र अपना लिया है और लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोका है वे भटक कर गुमराही में बहुत दूर निकल गये हैं। (167)
Be sure that
those who embrace disbelief and hinder others from the path of Allah have gone
a long way astray. (167)
जिन लोगों ने कुफ़्र अपनाया है (और दूसरों को अल्लाह के रास्ते से रोक कर उन पर) ज़ुल्म किया है, अल्लाह उनको बख़्शने वाला नहीं है और न उनको कोई और रास्ता दिखाने वाला है। (168)
Those who
have embraced disbelief (and have oppressed others by hindering them from the
path of Allah), Allah will not forgive them, nor will He show
them any other path. (168)
सिवाय दोज़ख़ के रास्ते के, जिसमें वे हमेशा-हमेशा रहेंगे। और यह बात अल्लाह के लिये बहुत मामूली है। (169)
Except the
path of Hell, wherein they will abide forever. And that is
very small for Allah. (169)
ऐ लोगो! यह रसूल तुम्हारे पास तुम्हारे परवर्दिगार की तरफ़ से हक़ लेकर आये हैं। अब (इन पर) ईमान ले आओ, कि तुम्हारी बेहतरी इसी में है। और अगर (अब भी) तुमने कुफ़्र की राह अपनाई तो (ख़ूब समझ लो कि) तमाम आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है अल्लाह ही का है, और अल्लाह इल्म और हिक्मत दोनों का मालिक है। (170)
O people!
These messengers have come to you with the truth from your Lord. Now believe in
them, for this is the best for you. And if you still
follow the path of disbelief, then (understand well that) all that is in the
heavens and the earth belongs to Allah, and
Allah is the possessor of knowledge and wisdom. (170)
ऐ अहले किताब! अपने दीन में हद से न बढ़ो और अल्लाह के बारे में हक़ के सिवा कोई बात न कहो। (हज़रत) मसीह ईसा इब्ने मरियम (अ़लैहिस्सलाम) तो महज़ अल्लाह के रसूल थे, और अल्लाह का एक कलिमा थे जो उसने (हज़रत) मरियम तक पहुँचाया, और एक रूह थी जो उसी की तरफ़ से (पैदा हुई) थी। लिहाज़ा अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ, और यह मत कहो कि (ख़ुदा) तीन हैं। इस बात से बाज़ आ जाओ, कि इसी में तुम्हारी बेहतरी है। अल्लाह तो एक ही माबूद है, वह इस बात से बिल्कुल पाक है कि उसका कोई बेटा हो। आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है उसी का है, और सब की देखभाल के लिये अल्लाह काफ़ी है। (171)
O People of
the Book! Do not exceed the limits in your religion and do not say anything
about Allah except the truth. Christ Jesus son of Maryam was only a messenger
of Allah, and a word from Allah which He conveyed to Mary, and a
spirit which was born from Him. So believe in Allah and His messengers, and do
not say that there are three. Refrain from saying that this is better for you.
Allah is the only God, He is
completely pure that He has a son. Whatever is in the heavens and the earth
belongs to Him, and Allah is sufficient to take care of everyone.
(171)
(हज़रत) मसीह कभी इस बात को आर (शर्म की बात) नहीं समझ सकते कि वह अल्लाह के बन्दे हों, और न मुक़र्रब (ख़ास और क़रीबी) फ़रिश्ते (इसमें कोई शर्म महसूस करते हैं) और जो शख़्स अपने परवर्दिगार की बन्दगी में आर समझे, और तकब्बुर का प्रदर्शन करे तो (वह अच्छी तरह समझ ले कि) अल्लाह उन सब को अपने पास जमा करेगा। (172)
(Hazrat) Masih
can never consider it a matter of shame that he is a servant of Allah, nor can
the close angels (feel any shame in this) And whoever is arrogant in worship of
his Lord and shows arrogance, (he should know that) Allah will gather them all to Himself. (172)
फिर जो लोग ईमान लाये होंगे और उन्होंने नेक अ़मल किये होंगे उनको उनका पूरा-पूरा सवाब देगा, और अपने फ़ज़्ल से उससे ज़्यादा भी देगा। रहे वे लोग जिन्होंने (बन्दगी को) आर (शर्म की बात) समझा होगा और तकब्बुर का प्रदर्शन किया होगा, तो उनको दर्दनाक अ़ज़ाब देगा, और उनको अल्लाह के सिवा अपना कोई रखवाला और मददगार नहीं मिलेगा। (173)
Then He will
reward those who believed and did good deeds with their full reward and will
give them more than that out of His bounty. As for those who
considered (worship) a shame and showed arrogance, He will
punish them with a painful punishment and they will not find for themselves any protector or helper except in Allah. (173)
ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे परवर्दिगार की तरफ़ से खुली दलील आ चुकी है, और हमने तुम्हारे पास एक ऐसी रोशनी भेज दी है जो रास्ते की पूरी वज़ाहत करने वाली है। (174)
O people!
Clear evidence has come to you from your Lord, and We have
sent you a light that makes the way clear. (174)
चुनाँचे जो लोग अल्लाह पर ईमान लाये हैं और उन्होंने उसी का सहारा थाम लिया है, अल्लाह उनको अपने फ़ज़्ल और रहमत में दाख़िल करेगा, और उन्हें अपने पास आने के लिये सीधे रास्ते तक पहुँचायेगा। (175)
So those who
have believed in Allah and have taken refuge in Him, Allah will
admit them into His bounty and mercy and guide them to the straight path to Him. (175)
(ऐ पैग़म्बर!) लोग तुम से (कलाला का हुक्म) पूछते हैं। कह दो कि अल्लाह तुम्हें कलाला (95) के बारे में हुक्म बताता है। अगर कोई शख़्स इस हाल में मर जाये कि उसकी औलाद न हो, और उसकी एक बहन हो तो वह उसके तर्के (छोड़े हुए माल) में से आधे की हक़दार होगी। और अगर उस बहन की औलाद न हो, (और वह मर जाये और उसका भाई ज़िन्दा हो) तो वह उस बहन का वारिस होगा। और अगर बहनें दो हों तो भाई के तर्के से वे दो तिहाई की हक़दार होंगी। और अगर (मरने वाले के) भाई भी हों और बहनें भी, तो एक मर्द को दो औरतों के बराबर हिस्सा मिलेगा। अल्लाह तुम्हारे सामने वज़ाहत (खोल कर बयान) करता है ताकि तुम गुमराह न होओ, और अल्लाह हर चीज़ का पूरा इल्म रखता है। (176)
(O Prophet!)
People ask you (about the ruling of Kalala). Say: Allah informs you about the
ruling of Kalala (95). If a
person dies without leaving any child and he has a sister, she will inherit
half of his inheritance. And if the sister has no child (and she dies and her
brother is alive), he will inherit the sister. And if there are two sisters,
they will inherit two-thirds of the inheritance of the brother. And if the
deceased has both brothers and sisters, a man will get the same share as two women.
Allah explains to you so that you may not go astray, and Allah knows
everything. (176)
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