Ali-Imran (अल-ए-इमरान)

 Ali-Imran (अल-ए-इमरान)

Languages: - Arabic, Hindi or English

Recitation of Quran Kareem

अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 1

1 - अलीफ़॰ लाम॰ मीम॰

1 – Alif-Laam-Meem



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 2

2 - अल्लाह ही पूज्य हैं, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह जीवन्त हैं, सबको सँम्भालने और क़ायम रखनेवाला

2- Allah alone is worthy of worship, there is no one worthy of worship except Him. He is the Living One, the Sustainer and Sustainer of all.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 3

3 - उसने तुमपर हक़ के साथ किताब उतारी जो पहले की (किताबों की) पुष्टि करती हैं, और उसने तौरात और इंजील उतारी

3 - He sent down to you the Book with truth which confirms the earlier (Books), and He sent down the Torah and the Injil.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 4

4 - इससे पहले लोगों के मार्गदर्शन के लिए और उसने कसौटी भी उतारी। निस्संदेह जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया उनके लिए कठोर यातना हैं और अल्लाह प्रभुत्वशाली भी हैं और (बुराई का) बदला लेनेवाला भी

4 - For the guidance of the people before this and he also brought down the criterion. Indeed, those who disbelieve in the revelations of Allah, there is a severe punishment for them, and Allah is Almighty and Retributive.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 5

5 - निस्संदेह अल्लाह से कोई चीज़ न धरती में छिपी हैं और न आकाश में

5 - Surely nothing is hidden from Allah, neither in the earth nor in the sky.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 6

6 - वही हैं जो गर्भाशयों में, जैसा चाहता हैं, तुम्हारा रूप देता हैं। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं

6 - He is the one who gives you the shape as per his wish in the wombs. There is no other worshipable God except that sovereign, enlightened one.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 7

7 - वही हैं जिसने तुमपर अपनी ओर से किताब उतारी, वे सुदृढ़ आयतें हैं जो किताब का मूल और सारगर्भित रूप हैं और दूसरी उपलक्षित, तो जिन लोगों के दिलों में टेढ़ हैं वे फ़ितना (गुमराही) का तलाश और उसके आशय और परिणाम की चाह में उसका अनुसरण करते हैं जो उपलक्षित हैं। जबकि उनका परिणाम बस अल्लाह ही जानता हैं, और वे जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं, "हम उसपर ईमान लाए, जो हर एक हमारे रब ही की ओर से हैं।" और चेतते तो केवल वही हैं जो बुद्धि और समझ रखते हैं

7 - It is He who has sent down the Book to you from himself, those are the solid verses which are the core and essence of the Book and the second is the second, so those whose hearts are crooked, they seek Fitnah (misguidance) and seek its meaning and result. I follow what is indicated. Whereas only Allah knows their outcome, and those who are certain in knowledge say, “We believe in that which, each of us, is from our Lord.” And only those who have intelligence and understanding are aware.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 8

8 - हमारे रब! जब तू हमें सीधे मार्ग पर लगा चुका है तो इसके पश्चात हमारे दिलों में टेढ़ न पैदा कर और हमें अपने पास से दयालुता प्रदान कर। निश्चय ही तू बड़ा दाता है

8 - Our Lord! After You have guided us to the straight path, do not create distortion in our hearts and grant us mercy from Yourself. surely you are a great giver



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 9

9 - हमारे रब! तू लोगों को एक दिन इकट्ठा करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नही। निस्सन्देह अल्लाह अपने वचन के विरुद्ध जाने वाला नही है

9 - Our Lord! You are going to gather the people one day, about which there is no doubt. Surely Allah will not go against His word.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 10

10 - जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई है अल्लाह के मुकाबले में तो न उसके माल उनके कुछ काम आएँगे और न उनकी संतान ही। और वही हैं जो आग (जहन्नम) का ईधन बनकर रहेंगे

10 - Those who have adopted the policy of denial, neither their wealth nor their children will be of any use in comparison to Allah. And they are the ones who will remain as fuel for the fire (hell)



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 11

11 - जैसे फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों पर पकड़ लिया। और अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है

11 - Just like the condition of Pharaoh's people and those before him. When they rejected Our revelations, Allah caught them in their sins. And Allah is severe in punishment




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 12

12 - इनकार करनेवालों से कह दो, "शीघ्र ही तुम पराभूत होगे और जहन्नम की ओर हाँके जाओगं। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।

12 - Say to those who disbelieve,Soon you will be defeated and will be driven to Hell. And what an evil abode it is.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 13

13 - तुम्हारे लिए उन दोनों गिरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गिरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों देख रहे थे कि वे उनसे दुगने है। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है

13 - There is a sign for you between the two groups that faced each other in the battle (of Badr). One group was fighting in the cause of Allah, while the other was apostate. They were seeing with their own eyes that they were twice their size. Allah provides strength to whomever He wishes with His help. Contains great educational material for sighted people




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 14

14 - मनुष्यों को चाहत की चीजों से प्रेम शोभायमान प्रतीत होता है कि वे स्त्रिमयाँ, बेटे, सोने-चाँदी के ढेर और निशान लगे (चुने हुए) घोड़े हैं और चौपाए और खेती। यह सब सांसारिक जीवन की सामग्री है और अल्लाह के पास ही अच्छा ठिकाना है

14 - It seems to humans that love for the things of desire are beautiful, they are wives, sons, piles of gold and silver, marked horses, cattle and crops. All this is the material of worldly life and the best destination is only with Allah.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 15

15 - कहो, "क्या मैं तुम्हें इनसे उत्तम चीज का पता दूँ?" जो लोग अल्लाह का डर रखेंगे उनके लिए उनके रब के पास बाग़ है, जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। वहाँ पाक-साफ़ जोड़े होंगे और अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी। और अल्लाह अपने बन्दों पर नज़र रखता है

15 - Say, " Shall I tell you something better than these?" Those who fear Allah will have gardens with their Lord beneath which rivers will flow. They will remain in them forever. There will be pure couples and Allah will be pleased. And Allah watches over His servants.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 16

16 - ये वे लोग है जो कहते है, "हमारे रब हम ईमान लाए है। अतः हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।

16 - These are those who say, " Our Lord, we have believed. So forgive us our sins and save us from the torment of the Fire (Hell)."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 17

17 - ये लोग धैर्य से काम लेनेवाले, सत्यवान और अत्यन्त आज्ञाकारी है, ये ((अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते और रात की अंतिम घड़ियों में क्षमा की प्रार्थनाएँ करते हैं

17 - These people are patient, truthful and extremely obedient, they spend (in the way of Allah) and pray for forgiveness in the last hours of the night.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 18

18 - अल्लाह ने गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; और फ़रिश्तों ने और उन लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करनेवाली एक सत्ता को जानते है। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं

18 - Allah testified that there is no one worthy of worship except Him; And the angels and those who know the One who establishes justice and balance. There is no one worthy of worship except that sovereign, enlightened one.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 19

19 - दीन (धर्म) तो अल्लाह की स्पष्ट में इस्लाम ही है। जिन्हें किताब दी गई थी, उन्होंने तो इसमें इसके पश्चात विभेद किया कि ज्ञान उनके पास आ चुका था। ऐसा उन्होंने परस्पर दुराग्रह के कारण किया। जो अल्लाह की आयतों का इनकार करेगा तो अल्लाह भी जल्द हिसाब लेनेवाला है

19 - The religion (religion) of Allah is Islam only. Those who were given the book, discriminated in it only after the knowledge had come to them. They did this because of mutual hatred. Whoever denies the verses of Allah, Allah will soon take account of him.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 20

20 - अब यदि वे तुमसे झगड़े तो कह दो, "मैंने और मेरे अनुयायियों ने तो अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया हैं।" और जिन्हें किताब मिली थी और जिनके पास किताब नहीं है, उनसे कहो, "क्या तुम भी इस्लाम को अपनाते हो?" यदि वे इस्लाम को अंगीकार कर लें तो सीधा मार्ग पर गए। और यदि मुँह मोड़े तो तुमपर केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। और अल्लाह स्वयं बन्दों को देख रहा है

20 - Now if they quarrel with you, say, " I and my followers have submitted ourselves to Allah." And say to those who were given the Book and those who do not have the Book, " Do you also accept Islam?" If they accept Islam then they are on the right path. And if he turns his face, then the only responsibility is on you to convey (the message). And Allah himself is watching the servants


अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 21

21 - जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करें और नबियों को नाहक क़त्ल करे और उन लोगों का क़ल्त करें जो न्याय के पालन करने को कहें, उनको दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो

21 - Those who deny the revelations of Allah and kill the prophets unjustly and kill those who ask them to follow justice, give them the good news of a painful punishment.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 22

22 - यही लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में अकारथ गए और उनका सहायक कोई भी नहीं

22 - These are the people whose deeds in this world and the hereafter have become useless and there is no one to help them.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 23

23 - क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें ईश-ग्रंथ का एक हिस्सा प्रदान हुआ। उन्हें अल्लाह की किताब की ओर बुलाया जाता है कि वह उनके बीच निर्णय करे, फिर भी उनका एक गिरोह (उसकी) उपेक्षा करते हुए मुँह फेर लेता है?

23 - Have you not seen those who were given a part of the Scripture? They are called to the Book of Allah to judge between them, yet a group of them turn away in ignorance (of it)?




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 24

24 - यह इसलिए कि वे कहते, "आग हमें नहीं छू सकती। हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों (के कष्टों) की बात और है।" उनकी मनघड़ंत बातों ने, जो वे घड़ते रहे हैं, उन्हें धोखे में डाल रखा है

24 - This is because they say, " The fire cannot touch us. Yes, it is a matter of a few days (sufferings)." Their fabricated words, which they have been making, have deceived them



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 25

25 - फिर क्या हाल होगा, जब हम उन्हें उस दिन इकट्ठा करेंगे, जिसके आने में कोई संदेह नहीं और प्रत्येक व्यक्ति को, जो कुछ उसने कमाया होगा, पूरा-पूरा मिल जाएगा; और उनके साथ अन्याय न होगा

25 - Then what will be the situation when We will gather them on that day, about whose arrival there is no doubt and every person will get in full whatever he has earned; and they will not be treated unfairly




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 26

26 - कहो, "ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त (प्रभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

26 - Say, " O Allah, Lord of the Kingdoms! You give the kingdom to whomever You wish and take away the kingdom from whomever You wish, and give honor to whomever You wish and humiliate whomever You wish. Goodness is in Your hand. Surely, you are blessed with every thing's power is achieved




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 27

27 - "तू रात को दिन में पिरोता है और दिन को रात में पिरोता है। तू निर्जीव से सजीव को निकालता है और सजीव से निर्जीव को निकालता है, बेहिसाब देता है।

27 - " You weave the night into the day and the day into the night. You take out the living from the non-living and take out the non-living from the living, you give incalculably."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 28

28 - ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है

28 - The believers should not take the disbelievers as their friends (secretaries) apart from the believers, and whoever does this has no connection with Allah, because the only thing related to him is that you should avoid them, just as they avoid you. And Allah makes you afraid of yourself, and to Allah you have to return.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 29

29 - कह दो, "यदि तुम अपने दिलों की बात छिपाओ या उसे प्रकट करो, प्रत्येक दशा में अल्लाह उसे जान लेगा। और वह उसे भी जानता है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।

29 - Say, " Whether you conceal what is in your hearts or reveal it, Allah knows it in every case. And He knows whatever is in the heavens and whatever is in the earth. And Allah knows everything. Has the power to."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 30

30 - जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई भलाई और अपनी की हुई बुराई को सामने मौजूद पाएगा, वह कामना करेगा कि काश! उसके और उस दिन के बीच बहुत दूर का फ़ासला होता। और अल्लाह तुम्हें अपना भय दिलाता है, और वह अपने बन्दों के लिए अत्यन्त करुणामय है

30 - The day every person finds the good he has done and the evil he has done in front of him, he will wish that if only! There would have been a very long distance between that day and that day. And Allah makes you fear Him, and He is most merciful to His servants.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 31

31 - कह दो, "यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।

31 - Say, "If you love Allah then follow me, Allah will also love you and forgive your sins. Allah is most forgiving, most merciful."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 32

32 - कह दो, "अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो अल्लाह भी इनकार करनेवालों से प्रेम नहीं करता

32 - Say, "Obey Allah and the Messenger." But if they turn away, then Allah does not love the disbelievers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 33

33 - अल्लाह ने आदम, नूह, इबराहीम की सन्तान और इमरान की सन्तान को सारे संसार की अपेक्षा प्राथमिकता देकर चुना

33 - Allah chose Adam, Noah, Abraham's children and Imran's children with priority over the whole world.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 34

34 - एक नस्त के रूप में, उसमें से एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी से पैदा हुई। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है

34 - As a destroyer, one generation from it, was born from another generation. Allah hears and knows everything




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 35

35 - याद करो जब इमरान की स्त्री ने कहा, "मेरे रब! जो बच्चा मेरे पेट में है उसे मैंने हर चीज़ से छुड़ाकर भेट स्वरूप तुझे अर्पित किया। अतः तू उसे मेरी ओर से स्वीकार कर। निस्संदेह तू सब कुछ सुनता, जानता है।

35 - Remember when Imran's wife said, " My Lord! I have freed the child in my womb from everything and offered it to you as a gift. Therefore, please accept him from me. Undoubtedly, you hear and know everything."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 36

36 - फिर जब उसके यहाँ बच्ची पैदा हुई तो उसने कहा, "मेरे रब! मेरे यहाँ तो लड़की पैदा हुई है।" - अल्लाह तो जानता ही था जो कुछ उसके यहाँ पैदा हुआ था। और वह लड़का उस लडकी की तरह नहीं हो सकता - "और मैंने उसका नाम मरयम रखा है और मैं उसे और उसकी सन्तान को तिरस्कृत शैतान (के उपद्रव) से सुरक्षित रखने के लिए तेरी शरण में देती हूँ।

36 - Then when a girl was born to her, she said, " My Lord! A girl is born to me." - Allah knew whatever was born in him. And that boy cannot be like that girl - “And I have named her Maryam and I entrust her and her children to you for protection from the evil of the despised Satan.”




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 37

37 - अतः उसके रब ने उसका अच्छी स्वीकृति के साथ स्वागत किया और उत्तम रूप में उसे परवान चढ़ाया; और ज़करिया को उसका संरक्षक बनाया। जब कभी ज़करिया उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाता, तो उसके पास कुछ रोज़ी पाता। उसने कहा, "ऐ मरयम! ये चीज़े तुझे कहाँ से मिलती है?" उसने कहा, "यह अल्लाह के पास से है।" निस्संदेह अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब देता है

37 - So his Lord welcomed him with good approval and provided him with the best; And made Zakariya his guardian. Whenever Zakariya went to him in the prayer room, he would get some sustenance from him. He said, " O Maryam! Where do you get these things from?" He said, " This is from Allah." Undoubtedly, Allah gives to whomever He wishes without any reason.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 38

38 - वही ज़करिया ने अपने रब को पुकारा, कहा, "मेरे रब! मुझे तू अपने पास से अच्छी सन्तान (अनुयायी) प्रदान कर। तू ही प्रार्थना का सुननेवाला है।

38 - Zakariya called out to his Lord and said, " My Lord! Give me the best children (followers) from You. You are the Hearer of prayers."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 39

39 - तो फ़रिश्तों ने उसे आवाज़ दी, जबकि वह मेहराब में खड़ा नमाज़ पढ़ रहा था, "अल्लाह, तुझे यह्याि की शुभ-सूचना देता है, जो अल्लाह के एक कलिमें की पुष्टि करनेवाला, सरदार, अत्यन्त संयमी और अच्छे लोगो में से एक नबी होगा।

39 - Then the angels called to him, while he was standing in the arch praying, " Allah, give you the good news of Yahya, who is the one who confirms the one word of Allah, the leader, the most restrained and one of the good people." Will be a prophet.”




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 40

40 - उसने कहा, "मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कैसे पैदा होगा, जबकि मुझे बुढापा आ गया है और मेरी पत्ऩी बाँझ है?" कहा, "इसी प्रकार अल्लाह जो चाहता है, करता है।

40 - He said, " My Lord! How will a son be born to me when I have reached old age and my wife is barren?" Said, " This is how Allah does whatever He wants."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 41

41 - उसने कहा, "मेरे रब! मेरे लिए कोई आदेश निश्चित कर दे।" कहा, "तुम्हारे लिए आदेश यह है कि तुम लोगों से तीन दिन तक संकेत के सिवा कोई बातचीत न करो। अपने रब को बहुत अधिक याद करो और सायंकाल और प्रातः समय उसकी तसबीह (महिमागान) करते रहो।

41 - He said, " My Lord! Make an order for me." Said, " The order for you is that you should not speak to people except signs for three days. Remember your Lord a lot and praise Him in the evening and in the morning."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 42

42 - और जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरयम! अल्लाह ने तुझे चुन लिया और तुझे पवित्रता प्रदान की और तुझे संसार की स्त्रियों के मुक़ाबले मं चुन लिया

42 - And when the angels said, " O Mary! Allah has chosen you and purified you and has chosen you over the women of the world."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 43

43 - "ऐ मरयम! पूरी निष्ठा के साथ अपने रब की आज्ञा का पालन करती रह, और सजदा कर और झुकनेवालों के साथ तू भी झूकती रह।

43 - " O Maryam! Keep obeying your Lord with full devotion, and prostrate and bow down with those who bow."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 44

44 - यह परोक्ष की सूचनाओं में से है, जिसकी वह्य हम तुम्हारी ओर कर रहे है। तुम तो उस समय उनके पास नहीं थे, जब वे अपनी क़लमों को फेंक रहे थ कि उनमें कौन मरयम का संरक्षक बने और न उनके समय थे, जब वे आपस में झगड़ रहे थे

44 - This is among the unseen information, which We are revealing to you. You were not with them at the time when they were throwing their pens to see who among them would be the guardian of Mary, nor were you there at the time when they were quarreling among themselves.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 45

45 - ओर याद करो जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरयम! अल्लाह तुझे अपने एक कलिमे (बात) की शुभ-सूचना देता है, जिसका नाम मसीह, मरयम का बेटा, ईसा होगा। वह दुनिया और आख़िरत मे आबरूवाला होगा और अल्लाह के निकटवर्ती लोगों में से होगा

45 - And remember when the angels said, " O Maryam! Allah gives you the good news of one of His words, whose name will be Masih, son of Mary, Isa. He will be the honorable one in this world and the hereafter and the one who will be honored with the blessings of Allah." will be among the people nearby




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 46

46 - वह लोगों से पालने में भी बात करेगा और बड़ी आयु को पहुँचकर भी। और वह नेक व्यक्ति होगा।

46 - He will talk to people even in his cradle and even after reaching old age. And he will be a righteous person.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 47

47 - वह बोली, "मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कहाँ से होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नहीं?" कहा, "ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है तो उसको बस यही कहता है 'हो जा' तो वह हो जाता है

47 - She said, " My Lord! How will I have a son when no man has ever touched me?" Said, " It will be like this, Allah creates whatever He wants. When He decides to do any work, He just says to it 'Be' and it happens.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 48

48 - "और उसको किताब, हिकमत, तौरात और इंजील का भी ज्ञान देगा

48 - " And will also give him knowledge of the Book, Wisdom, Torah and the Gospel.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 49

49 - "और उसे इसराईल की संतान की ओर रसूल बनाकर भेजेगा। (वह कहेगा) कि मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशाली लेकर आया हूँ कि मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह के आदेश से उड़ने लगती है। और मैं अल्लाह के आदेश से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देता हूँ और मुर्दे को जीवित कर देता हूँ। और मैं तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम खाते हो और जो कुछ अपने घरों में इकट्ठा करके रखते हो। निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम माननेवाले हो

49 - " And will send him as a messenger to the Children of Israel. (He will say) I have come to you with a sign from your Lord that I make for you from clay the shape of a bird, and then blow into it. Then it begins to fly by the leave of Allah. And by the leave of Allah, I heal the blind and the leper and give life to the dead. And I tell you what you eat and what you keep in your homes. You keep them together. Indeed, in this is a sign for you, if you are believers.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 50

50 - "और मैं तौरात की, जो मेरे आगे है, पुष्टि करता हूँ और इसलिए आया हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ उन चीज़ों को हलाल कर दूँ जो तुम्हारे लिए हराम थी। और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशानी लेकर आया हूँ। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो

50 - " And I confirm what was before me in the Torah, and I have come to make lawful for you some of the things that were forbidden to you. And I have come to you with a sign from your Lord. So, fear Allah and obey me




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 51

51 - "निस्संदेह अल्लाह मेरी भी रब है और तुम्हारा रब भी, अतः तुम उसी की बन्दगी करो। यही सीधा मार्ग है।

51 - " Undoubtedly, Allah is my Lord and your Lord too, so worship Him only. This is the straight path."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 52

52 - फिर जब ईसा को उनके अविश्वास और इनकार का आभास हुआ तो उसने कहा, "कौन अल्लाह की ओर बढ़ने में मेरा सहायक होता है?" हवारियों (साथियों) ने कहा, "हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाए और गवाह रहिए कि हम मुस्लिम है

52 - Then when Jesus became aware of their disbelief and denial, he said, " Who helps me in moving towards Allah?" The Hawaris (companions) said, " We are the helpers of Allah. We believe in Allah and bear witness that we are Muslims."




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 53

53 - "हमारे रब! तूने जो कुछ उतारा है, हम उसपर ईमान लाए और इस रसूल का अनुसरण स्वीकार किया। अतः तू हमें गवाही देनेवालों में लिख ले।

53 - " Our Lord! We believe in what You have revealed and accept the following of this Messenger. So write us among those who bear witness.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 54

54 - और वे चाल चले तो अल्लाह ने भी उसका तोड़ किया और अल्लाह उत्तम तोड़ करनेवाला है

54 - And if they continued, Allah also broke it and Allah is the best breaker.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 55

55 - जब अल्लाह ने कहा, "ऐ ईसा! मैं तुझे अपने क़ब्जे में ले लूँगा और तुझे अपनी ओर उठा लूँगा और अविश्वासियों (की कुचेष्टाओं) से तुझे पाक कर दूँगा और तेरे अनुयायियों को क़ियामत के दिन तक लोगों के ऊपर रखूँगा, जिन्होंने इनकार किया। फिर मेरी ओर तुम्हें लौटना है। फिर मैं तुम्हारे बीच उन चीज़ों का फ़ैसला कर दूँगा, जिनके विषय में तुम विभेद करते रहे हो

55 - When Allah said, " O Jesus! I will take you under my control and raise you to Myself and will purify you from the evil deeds of the unbelievers and will keep your followers till the Day of Judgment over the people who disbelieve. "Then you have to return to Me. Then I will judge between you about those things about which you used to differ.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 56

56 - "तो जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, उन्हें दुनिया और आख़िरत में कड़ी यातना दूँगा। उनका कोई सहायक न होगा।

56 - "So those who adopted the policy of disbelief, I will punish them with severe punishment in this world and the hereafter. They will have no helper."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 57

57 - रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें वह उनका पूरा-पूरा बदला देगा। अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता

57 - As for those who believed and did good deeds, He will reward them in full. Allah does not love the oppressors



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 58

58 - ये आयतें है और हिकमत (तत्वज्ञान) से परिपूर्ण अनुस्मारक, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं

58 - These are the verses and reminders full of wisdom, which we recite to you.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 59

59 - निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा, "हो जा", तो वह हो जाता है

59 - Undoubtedly, in the eyes of Allah, the example of Jesus is like that of Adam. He created him from clay, then said to him, " Be", and he became.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 60

60 - यह हक़ तुम्हारे रब की ओर से हैं, तो तुम संदेह में न पड़ना

60 - This truth is from your Lord, so do not fall into doubt.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 61

61 - अब इसके पश्चात कि तुम्हारे पास ज्ञान आ चुका है, कोई तुमसे इस विषय में कुतर्क करे तो कह दो, "आओ, हम अपने बेटों को बुला लें और तुम भी अपने बेटों को बुला लो, और हम अपनी स्त्रियों को बुला लें और तुम भी अपनी स्त्रियों को बुला लो, और हम अपने को और तुम अपने को ले आओ, फिर मिलकर प्रार्थना करें और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजे।

61 - Now after the knowledge has come to you, if anyone argues with you about this, then say, " Come, let us call our sons and you also call your sons, and let us call our women and You also call your women, and we bring ours and you bring yours, then pray together and send the curse of Allah on the liars.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 62

62 - निस्संदेह यही सच्चा बयान है और अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। और अल्लाह ही प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

62 - Undoubtedly this is the true statement and there is no one worthy of worship except Allah. And Allah is the Sovereign, the Wise.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 63

63 - फिर यदि वे लोग मुँह मोड़े तो अल्लाह फ़सादियों को भली-भाँति जानता है

63 - Then if they turn away, then Allah knows best the miscreants.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 64

64 - कहो, "ऐ किताबवालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है; यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, "गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) है।

64 - Say, “ O People of the Book, come to something that is agreed upon between us and you : that we worship none but Allah, and do not associate anything with Him, and none of us Make each other a god other than Allah." Then if they turn away, say, “Be witness, we are Muslims (obedient).”



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 65

65 - "ऐ किताबवालो! तुम इबराहीम के विषय में हमसे क्यों झगड़ते हो? जबकि तौरात और इंजील तो उसके पश्चात उतारी गई है, तो क्या तुम समझ से काम नहीं लेते?

65 - "O People of the Book! Why do you argue with us about Abraham? When the Torah and the Injil were sent down after him, do you not use understanding?



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 66

66 - "ये तुम लोग हो कि उसके विषय में वाद-विवाद कर चुके जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान था। अब उसके विषय में क्यों वाद-विवाद करते हो, जिसके विषय में तुम्हें कुछ भी ज्ञान नहीं? अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते

66 - " You are the ones who have argued about that about which you had some knowledge. Why do you now argue about that about which you have no knowledge? Allah knows, you do not know."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 67

67 - इबराहीम न यहूदी था और न ईसाई, बल्कि वह तो एक ओर को होकर रहनेवाला मुस्लिम (आज्ञाकारी) था। वह कदापि मुशरिकों में से न था

67 - Abraham was neither a Jew nor a Christian, rather he was an obedient Muslim. He was never one of the polytheists



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 68

68 - निस्संदेह इबराहीम से सबसे अधिक निकटता का सम्बन्ध रखनेवाले वे लोग है जिन्होंने उसका अनुसरण किया, और यह नबी और ईमानवाले लोग। और अल्लाह ईमानवालों को समर्थक एवं सहायक है

68 - Undoubtedly, those most closely related to Abraham are those who followed him, and the prophets and the believers. And Allah is the supporter and helper of the believers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 69

69 - किताबवालों में से एक गिरोह के लोगों की कामना है कि काश! वे तुम्हें पथभ्रष्ट कर सकें, जबकि वे केवल अपने-आपकों पथभ्रष्ट कर रहे है! किन्तु उन्हें इसका एहसास नहीं

69 - A group of people from among the people of the Book wish that if only! That they may mislead you, while they are only misguiding themselves! but they don't realize it



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 70

70 - ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि तुम स्वयं गवाह हो?

70 - O people of the book! Why do you deny the revelations of Allah, while you yourselves are witnesses?



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 71

71 - ऐ किताबवालो! सत्य को असत्य के साथ क्यों गड्ड-मड्ड करते और जानते-बूझते हुए सत्य को छिपाते हो?

71 - O people of books! Why do you confuse truth with falsehood and hide the truth knowingly?



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 72

72 - किताबवालों में से एक गिरोह कहता है, "ईमानवालो पर जो कुछ उतरा है, उस पर प्रातःकाल ईमान लाओ और संध्या समय उसका इनकार कर दो, ताकि वे फिर जाएँ

72 - A group from among the People of the Book says, " Believe in what has been revealed to the believers in the morning and reject it in the evening, so that they may turn back."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 73

73 - "और तुम अपने धर्म के अनुयायियों के अतिरिक्त किसी पर विश्वास न करो। कह दो, वास्तविक मार्गदर्शन तो अल्लाह का मार्गदर्शन है - कि कहीं जो चीज़ तुम्हें प्राप्त हो जाए, या वे तुम्हारे रब के सामने तुम्हारे ख़िलाफ़ हुज्जत कर सकें।" कह दो, "बढ़-चढ़कर प्रदान करना तो अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सब कुछ जाननेवाला है

73 - " And do not believe in anyone except the followers of your religion. Say, true guidance is the guidance of Allah - that you may attain whatever you want, or that they may make excuses against you before your Lord." Say, " It is in the hands of Allah to provide in abundance, He provides to whomever He wills. And Allah is All-Comprehensive, All-Knowing."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 74

74 - "वह जिसे चाहता है अपनी रहमत (दयालुता) के लिए ख़ास कर लेता है। और अल्लाह बड़ी उदारता दर्शानेवाला है।

74 - "He selects for His mercy whomever He wills. And Allah is most generous."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 75

75 - और किताबवालों में कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास धन-दौलच का एक ढेर भी अमानत रख दो तो वह उसे तुम्हें लौटा देगा। और उनमें कोई ऐसा है कि यदि तुम एक दीनार भी उसकी अमानत में रखों, तो जब तक कि तुम उसके सिर पर सवार न हो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा। यह इसलिए कि वे कहते है, "उन लोगों के विषय में जो किताबवाले नहीं हैं हमारी कोई पकड़ नहीं।" और वे जानते-बूझते अल्लाह पर झूठ मढ़ते है

75 - And there is someone among the People of the Book such that if you trust him with even a heap of wealth, he will return it to you. And there is someone among them who, if you keep even one dinar in his trust , will not pay it back to you unless you are in charge of him. This is because they say, “ We have no hold on those who are not of the Book.” And they accuse Allah of lies knowingly.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 76

76 - क्यों नहीं, जो कोई अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और डर रखेगा, तो अल्लाह भी डर रखनेवालों से प्रेम करता है

76 - Why not, whoever fulfills his promise and remains fearful, Allah also loves those who fear.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 77

77 - रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा और अपनी क़समों का थोड़े मूल्य पर सौदा करते हैं, उनका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न क़ियामत के दिन उनकी ओर देखेगा, और न ही उन्हें निखारेगा। उनके लिए तो दुखद यातना है

77 - As for those who trade the promises of Allah and their oaths for a small price, they will have no share in the Hereafter. Allah will neither speak to them nor look at them on the Day of Judgment, nor will He enhance them. for them is a painful torment



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 78

78 - उनमें कुछ लोग ऐसे है जो किताब पढ़ते हुए अपनी ज़बानों का इस प्रकार उलट-फेर करते है कि तुम समझों कि वह किताब ही में से है, जबकि वह किताब में से नहीं होता। और वे कहते है, "यह अल्लाह की ओर से है।" जबकि वह अल्लाह की ओर से नहीं होता। और वे जानते-बूझते झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपते है

78 - There are some people among them who, while reading a book, twist their tongues in such a way that you think that it is from the book , whereas it is not from the book. And they say, “This is from Allah.” Whereas it is not from Allah. And they knowingly fabricate lies and impose them on Allah.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 79

79 - किसी मनुष्य के लिए यह सम्भव न था कि अल्लाह उसे किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) और पैग़म्बरी प्रदान करे और वह लोगों से कहने लगे, "तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे उपासक बनो।" बल्कि वह तो यही कहेगा कि, "तुम रबवाले बनो, इसलिए कि तुम किताब की शिक्षा देते हो और इसलिए कि तुम स्वयं भी पढ़ते हो।

79 - It was not possible for any human being that Allah would give him the Book, Wisdom and Prophethood and he would say to the people , " Become my worshipers instead of Allah." Rather, he would say, " You belong to God, because you teach the book and because you also read it yourself."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 80

80 - और न वह तुम्हें इस बात का हुक्म देगा कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना रब बना लो। क्या वह तुम्हें अधर्म का हुक्म देगा, जबकि तुम (उसके) आज्ञाकारी हो?

80 - Nor will He command you to take angels and prophets as your lords. Will He command you to iniquity, while you are obedient (to Him)?



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 81

81 - और याद करो जब अल्लाह ने नबियों के सम्बन्ध में वचन लिया था, "मैंने तुम्हें जो कुछ किताब और हिकमत प्रदान की, इसके पश्चात तुम्हारे पास कोई रसूल उसकी पुष्टि करता हुआ आए जो तुम्हारे पास मौजूद है, तो तुम अवश्य उस पर ईमान लाओगे और निश्चय ही उसकी सहायता करोगे।" कहा, "क्या तुमने इक़रार किया? और इसपर मेरी ओर से डाली हुई जिम्मेदारी को बोझ उठाया?" उन्होंने कहा, "हमने इक़रार किया।" कहा, "अच्छा तो गवाह किया और मैं भी तुम्हारे साथ गवाह हूँ।

81 - And recall when Allah said regarding the prophets, " After I have given you the Book and the Wisdom, there comes to you a messenger confirming what is with you, then you will surely believe in him." You will bring it and will definitely help him." Said, " Did you accept? And bear the burden of responsibility imposed on you by me?" He said, " We agreed." Said, " Okay, so you bear witness and I am also a witness with you."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 82

82 - फिर इसके बाद जो फिर गए, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी है

82 - Then those who turned away after this, such are the disobedient people.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 83

83 - अब क्या इन लोगों को अल्लाह के दीन (धर्म) के सिवा किसी और दीन की तलब है, हालाँकि आकाशों और धरती में जो कोई भी है, स्वेच्छापूर्वक या विवश होकर उसी के आगे झुका हुआ है। और उसी की ओर सबको लौटना है?

83 - Now do these people crave for any other religion other than the religion of Allah, although whoever is in the heavens and the earth bows before Him, willingly or under compulsion. And everyone has to return to that?



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 84

84 - कहो, "हम तो अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान लाए जो हम पर उतरी है, और जो इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याकूब़ और उनकी सन्तान पर उतरी उसपर भी, और जो मूसा और ईसा और दूसरे नबियो को उनके रब की ओर से प्रदान हुई (उसपर भी हम ईमान रखते है) । हम उनमें से किसी को उस ओर से प्रदान हुई (उसपर भी हम ईमान रखते है) । हम उनमें से किसी को उस सम्बन्ध से अलग नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) है।

84 - Say, “We believe in Allah and in what was revealed to us, and in what was revealed to Abraham, Ishmael, Isaac and Jacob and their descendants, and in what was revealed to Moses and Jesus and the other prophets from their Lord.” We have not separated any of them from the relationship that is found between them, and we are obedient to Him (Muslims).”



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 85

85 - जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा

85 - If someone invokes any other religion other than Islam, nothing will be accepted from him. And in the end he will be among the losers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 86

86 - अल्लाह उन लोगों को कैसे मार्ग दिखाएगा, जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात अधर्म और इनकार की नीति अपनाई, जबकि वे स्वयं इस बात की गवाही दे चुके हैं कि यह रसूल सच्चा है और उनके पास स्पष्ट निशानियाँ भी आ चुकी हैं? अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाया करता

86 - How will Allah guide those people who followed the path of unrighteousness and denial after their faith, when they themselves have testified that this Messenger is truthful and clear signs have come to them? Allah does not guide the wrongdoers



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 87

87 - उन लोगों का बदला यही है कि उनपर अल्लाह और फ़रिश्तों और सारे मनुष्यों की लानत है

87 - The retribution of those people is that upon them is the curse of Allah and the angels and all mankind.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 88

88 - इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की होगी और न उन्हें मुहलत ही दी जाएगी

88 - They will remain in this condition forever, neither will their punishment be lightened nor will they be given any respite.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 89

89 - हाँ, जिन लोगों ने इसके पश्चात तौबा कर ली और अपनी नीति को सुधार लिया तो निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

89 - Yes, those who repented after this and corrected their conduct, then undoubtedly Allah is Most Forgiving and Merciful.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 90

90 - रहे वे लोग जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया और अपने इनकार में बढ़ते ही गए, उनकी तौबा कदापि स्वीकार न होगी। वास्तव में वही पथभ्रष्ट हैं

90 - As for those who disbelieved after their faith and kept increasing in their disbelief, their repentance will never be accepted. it is they who are truly astray



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 91

91 - निस्संदेह जिन लोगों ने इनकार किया और इनकार ही की दशा में मरे, तो उनमें किसी से धरती के बराबर सोना भी, यदि उसने प्राण-मुक्ति के लिए दिया हो, कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है और उनका कोई सहायक न होगा

91 - Undoubtedly, among those who denied and died while denying, even gold equal to the amount of earth, if he had given it for the salvation of his life, would never be accepted from anyone. For such people is a painful punishment and they will have no helper.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 92

92 - तुम नेकी और वफ़ादारी के दर्जे को नहीं पहुँच सकते, जब तक कि उन चीज़ो को (अल्लाह के मार्ग में) ख़र्च न करो, जो तुम्हें प्रिय है। और जो चीज़ भी तुम ख़र्च करोगे, निश्चय ही अल्लाह को उसका ज्ञान होगा

92 - You will not reach the level of righteousness and loyalty unless you spend (in the path of Allah) those things that are dear to you. And whatever you spend, Allah will surely be aware of it.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 93

93 - खाने की सारी चीज़े इसराईल की संतान के लिए हलाल थी, सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें तौरात के उतरने से पहले इसराईल ने स्वयं अपने हराम कर लिया था। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो।

93 - All food items were lawful for the Children of Israel, except those things which Israel itself had prohibited before the revelation of the Torah. Say, “Bring the Torah and read it, if you are truthful.”



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 94

94 - अब इसके पश्चात भी जो व्यक्ति झूठी बातें अल्लाह से जोड़े, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी है

94 - Now even after this, whoever associates falsehood with Allah, such people are the wrongdoers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 95

95 - कहो, "अल्लाह ने सच कहा है; अतः इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करो, जो हर ओर से कटकर एक का हो गया था और मुशरिकों में से न था

95 - Say, " Allah has spoken the truth; so follow the path of Abraham, who was cut off from all sides and became one, and was not one of the polytheists."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 96

96 - "निस्ंसदेह इबादत के लिए पहला घर जो 'मानव के लिए' बनाया गया वहीं है जो मक्का में है, बरकतवाला और सर्वथा मार्गदर्शन, संसारवालों के लिए

96- " Undoubtedly, the first house of worship built ' for mankind ' is the one in Mecca, the Blessed One and the Complete Guide for the people of the world.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 97

97 - "उसमें स्पष्ट निशानियाँ है, वह इबराहीम का स्थल है। और जिसने उसमें प्रवेश किया, वह निश्चिन्त हो गया। लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।

97 - " There are clear signs in it, it is the place of Abraham. And whoever entered it became secure. It is Allah's duty over the people that whoever is able to reach there, should perform Hajj to this House, and whoever If there is denial (nothing is harmed to Allah by this denial) Allah is independent from the whole world.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 98

98 - कहो, "ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह की दृष्टिअ में है?

98 - Say, " O People of the Book! Why do you deny the revelations of Allah, when whatever you do is in the sight of Allah?"



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 99

99 - कहो, "ऐ किताबवालो! तुम ईमान लानेवालों को अल्लाह के मार्ग से क्यो रोकते हो, तुम्हें उसमें किसी टेढ़ की तलाश रहती है, जबकि तुम भली-भाँति वास्तविकता से अवगत हो और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।"

99 - Say, " O People of the Book! Why do you prevent those who believe from the path of Allah, seeking a crooked path in it, while you are well aware of the reality and Allah is not unaware of what you do? " Is."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 100

100 - ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुमने उनके किसी गिरोह की बात माल ली, जिन्हें किताब मिली थी, तो वे तुम्हारे ईमान लाने के पश्चात फिर तुम्हें अधर्मी बना देंगे

100 - O you who believe! If you follow the advice of any group of those who were given the Book, they will turn you into unbelievers after you have believed.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 101

101 - अब तुम इनकार कैसे कर सकते हो, जबकि तुम्हें अल्लाह की आयतें पढ़कर सुनाई जा रही है और उसका रसूल तुम्हारे बीच मौजूद है? जो कोई अल्लाह को मज़बूती से पकड़ ले, वह सीधे मार्ग पर आ गया

101 - How can you deny now, when Allah's verses are being read to you and His Messenger is present among you? Whoever holds fast to Allah has come to the right path.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 102

102 - ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो, जैसाकि उसका डर रखने का हक़ है। और तुम्हारी मृत्यु बस इस दशा में आए कि तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो

102 - O you who believe! Have fear of Allah, as it is right to fear Him. And your death will come only if you are a Muslim (obedient)



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 103

103 - और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो। और अल्लाह की उस कृपा को याद करो जो तुमपर हुई। जब तुम आपस में एक-दूसरे के शत्रु थे तो उसने तुम्हारे दिलों को परस्पर जोड़ दिया और तुम उसकी कृपा से भाई-भाई बन गए। तुम आग के एक गड्ढे के किनारे खड़े थे, तो अल्लाह ने उससे तुम्हें बचा लिया। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम मार्ग पा लो

103 - And together hold fast to the rope of Allah and do not fall into discord. And remember the blessings of Allah which were bestowed upon you. When you were enemies of each other, He joined your hearts together and by His grace you became brothers. You were standing at the edge of a pit of fire, so Allah saved you from it. Thus Allah clarifies His revelations to you, so that you may be guided.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 104

104 - और तुम्हें एक ऐसे समुदाय का रूप धारण कर लेना चाहिए जो नेकी की ओर बुलाए और भलाई का आदेश दे और बुराई से रोके। यही सफलता प्राप्त करनेवाले लोग है

104 - And you should become a community that calls to righteousness and enjoins good and forbids evil. These are the people who achieve success



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 105

105 - तुम उन लोगों की तरह न हो जाना जो विभेद में पड़ गए, और इसके पश्चात कि उनके पास खुली निशानियाँ आ चुकी थी, वे विभेद में पड़ गए। ये वही लोग है, जिनके लिए बड़ी (घोर) यातना है। (यह यातना उस दिन होगी)

105 - Do not be like those who are divided, and after clear signs have come to them, they are divided. These are the people for whom there is a severe punishment. (This torture will happen on that day)



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 106

106 - जिस दिन कितने ही चेहरे उज्ज्वल होंगे और कितने ही चेहरे काले पड़ जाएँगे, तो जिनके चेहेर काले पड़ गए होंगे (वे सदा यातना में ग्रस्त रहेंगे। खुली निशानियाँ आने का बाद जिन्होंने विभेद किया) उनसे कहा जाएगा, "क्या तुमने ईमान के पश्चात इनकार की नीति अपनाई? तो लो अब उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो, यातना का मज़ा चखो।

106 - On the Day when many faces will become bright and many faces will become dark, then those whose faces will become black (they will remain in torment forever. Those who discriminated after the clear signs) will be said to them, " Have you believed? Then you adopted the policy of denial? So now, in return for the denial you have been doing, taste the torture.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 107

107 - रहे वे लोग जिनके चेहरे उज्ज्वल होंगे, वे अल्लाह की दयालुता की छाया में होंगे। वे उसी में सदैव रहेंगे

107 - As for those whose faces are bright, they will be under the shadow of Allah's mercy. they will remain there forever



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 108

108 - ये अल्लाह की आयतें है, जिन्हें हम हक़ के साथ तुम्हें सुना रहे है। अल्लाह संसारवालों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करना चाहता

108 - These are the verses of Allah, which we recite to you with the truth. Allah does not want to inflict any kind of oppression on the people of this world.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 109

109 - आकाशों और धरती मे जो कुछ है अल्लाह ही का है, और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते है

109 - Whatever is in the heavens and the earth belongs to Allah, and to Allah are returned all matters.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 110

110 - तुम एक उत्तम समुदाय हो, जो लोगों के समक्ष लाया गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। और यदि किताबवाले भी ईमान लाते तो उनके लिए यह अच्छा होता। उनमें ईमानवाले भी हैं, किन्तु उनमें अधिकतर लोग अवज्ञाकारी ही हैं

110 - You are the best community that has been brought before people. You enjoin good and forbid evil and believe in Allah. And if the People of the Book had also believed, it would have been better for them. There are believers among them, but most of them are disobedient.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 111

111 - थोड़ा दुख पहुँचाने के अतिरिक्त वे तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। और यदि वे तुमसे लड़ेंगे, तो तुम्हें पीठ दिखा जाएँगे, फिर उन्हें कोई सहायता भी न मिलेगी

111 - Apart from causing a little pain, they can't do you any harm. And if they fight you, they will turn their backs on you, and then they will get no help.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 112

112 - वे जहाँ कहीं भी पाए गए उनपर ज़िल्लत (अपमान) थोप दी गई। किन्तु अल्लाह की रस्सी थामें या लोगों का रस्सी, तो और बात है। वे ल्लाह के प्रकोप के पात्र हुए और उनपर दशाहीनता थोप दी गई। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार और नबियों को नाहक़ क़त्ल करते रहे है। और यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और सीमोल्लंघन करते रहे

112 - Wherever they were found, humiliation was imposed on them. But holding the rope of Allah or the rope of people is a different matter. They incurred the wrath of Allah and statelessness was imposed on them. This is because they have been denying the revelations of Allah and killing the prophets unjustly. And that's because they disobeyed and kept breaking the rules



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 113

113 - ये सब एक जैसे नहीं है। किताबवालों में से कुछ ऐसे लोग भी है जो सीधे मार्ग पर है और रात की घड़ियों में अल्लाह की आयतें पढ़ते है और वे सजदा करते रहनेवाले है

113 - These are not all the same. There are some people among the people of the Book who are on the right path and recite the verses of Allah during the hours of the night and they continue to prostrate.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 114

114 - वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते है और नेकी का हुक्म देते और बुराई से रोकते है और नेक कामों में अग्रसर रहते है, और वे अच्छे लोगों में से है

114 - They believe in Allah and the Last Day, and enjoin good, and forbid evil, and do good deeds, and they are among the good people.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 115

115 - जो नेकी भी वे करेंगे, उसकी अवमानना न होगी। अल्लाह का डर रखनेवालो से भली-भाँति परिचित है

115 - Whatever good they do, it will not be disregarded. Well known to those who fear Allah



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 116

116 - रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, तो अल्लाह के मुक़ाबले में न उनके माल कुछ काम आ सकेंगे और न उनकी सन्तान ही। वे तो आग में जानेवाले लोग है, उसी में वे सदैव रहेंगे

116 - As for those who disbelieve, then neither their wealth nor their children will be of any avail against Allah. They are the people who will go to the Fire; they will remain therein forever.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 117

117 - इस सांसारिक जीवन के लिए जो कुछ भी वे ख़र्च करते है, उसकी मिसाल उस वायु जैसी है जिसमें पाला हो और वह उन लोगों की खेती पर चल जाए, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार नहीं किया, अपितु वे तो स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे है

117 - The example of whatever they spend for this worldly life is like the wind on which there is frost and which blows on the crops of those who have not wronged themselves, but they themselves are wronging themselves. Is



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 118

118 - ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं

118 - O you who believe! Do not make others your close friends except your own, they leave no stone unturned in harming you. Whatever difficulty you fall into, it is dear to him. Their malice has already been expressed through their mouth and whatever is hidden in their chest is even greater than this. If you use your intelligence, we have made clear the signs for you.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 119

119 - ये चो तुम हो जो उनसे प्रेम करते हो और वे तुमसे प्रेम नहीं करते, जबकि तुम समस्त किताबों पर ईमान रखते हो। और वे जब तुमसे मिलते है तो कहने को तो कहते है कि "हम ईमान लाए है।" किन्तु जब वे अलग होते है तो तुमपर क्रोध के मारे दाँतों से उँगलियाँ काटने लगते है। कह दो, "तुम अपने क्रोध में आप मरो। निस्संदेह अल्लाह दिलों के भेद को जानता है।

119 - It is you who love them and they do not love you, while you believe in all the Books. And when they meet you, they say, "We believe." But when they separate, they get angry at you and start biting your fingers. Say, " You yourself die in your anger. Surely Allah knows the secrets of the hearts."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 120

120 - यदि तुम्हारा कोई भला होता है तो उन्हें बुरा लगता है। परन्तु यदि तुम्हें कोई अप्रिय बात पेश आती है तो उससे वे प्रसन्न हो जाते है। यदि तुमने धैर्य से काम लिया और (अल्लाह का) डर रखा, तो उनकी कोई चाल तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह ने उसे अपने धेरे में ले रखा है

120 - If someone good happens to you, they feel bad. But if something unpleasant happens to you then they become happy with it. If you remain patient and fear (Allah), then none of their tricks can harm you. whatever they are doing, Allah has taken him into his fold



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 121

121 - याद करो जब तुम सवेरे अपने घर से निकलकर ईमानवालों को युद्ध के मोर्चों पर लगा रहे थे। - अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है

121 - Remember when you came out of your homes early in the morning and deployed the believers on the battle fronts. - Allah hears and knows everything.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 122

122 - जब तुम्हारे दो गिरोहों ने साहस छोड़ देना चाहा, जबकि अल्लाह उनका संरक्षक मौजूद था - और ईमानवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए

122 - When two of your groups tried to give up , while Allah was their protector - and the believers must rely on Allah alone.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 123

123 - और बद्र में अल्लाह तुम्हारी सहायता कर भी चुका था, जबकि तुम बहुत कमज़ोर हालत में थे। अतः अल्लाह ही का डर रखो, ताकि तुम कृतज्ञ बनो

123 - And Allah had already helped you in Badr , while you were in a very weak condition. So have fear of Allah, so that you may be grateful.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 124

124 - जब तुम ईमानवालों से कह रहे थे, "क्या यह तुम्हारे लिए काफ़ी नही हैं कि तुम्हारा रब तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करे?

124 - When you were saying to the believers, " Is it not enough for you that your Lord should send down three thousand angels to help you?"



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 125

125 - हाँ, क्यों नहीं। यदि तुम धैर्य से काम लो और डर रखो, फिर शत्रु सहसा तुमपर चढ़ आएँ, उसी क्षण तुम्हारा रब पाँच हज़ार विध्वंशकारी फ़रिश्तों से तुम्हारी सहायता करेगा

125 - Yes, why not. If you exercise patience and fear , then the enemy suddenly attacks you , at that very moment your Lord will help you with five thousand destroying angels.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 126

126 - अल्लाह ने तो इसे तुम्हारे लिए बस एक शुभ-सूचना बनाया और इसलिए कि तुम्हारे दिल सन्तुष्ट हो जाएँ - सहायता तो बस अल्लाह ही के यहाँ से आती है जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

126 - Allah has only made this a good news for you and so that your hearts may be satisfied - Help comes only from Allah, the Most Powerful, the Wise.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 127

127 - ताकि इनकार करनेवालों के एक हिस्से को काट डाले या उन्हें बुरी पराजित और अपमानित कर दे कि वे असफल होकर लौटें

127 - So that He may cut off a part of the disbelievers or cause them a severe defeat and humiliation so that they may return in failure.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 128

128 - तुम्हें इस मामले में कोई अधिकार नहीं - चाहे वह उसकी तौबा क़बूल करे या उन्हें यातना दे, क्योंकि वे अत्याचारी है

128 - You have no right in this matter - whether He accepts his repentance or tortures them, because they are wrongdoers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 129

129 - आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है

129 – Whatever is in the heavens and the earth belongs to Allah . He forgives whomever He wishes and tortures whomever He wishes. And Allah is most forgiving and merciful.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 130

130 - ऐ ईमान लानेवालो! बढ़ोत्तरी के ध्येय से ब्याज न खाओ, जो कई गुना अधिक हो सकता है। और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो

130 - O you who believe! Do not eat interest with the aim of increasing it , which can be many times higher. And have fear of Allah, so that you may achieve success.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 131

131 - और उस आग से बचो जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार है  

131 - And avoid the fire prepared for the disbelievers



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 132

132 - और अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी बनो, ताकि तुमपर दया की जाए                                                      

132 - And be obedient to Allah and the Messenger, so that you may receive mercy.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 133

133 - और अपने रब की क्षमा और उस जन्नत की ओर बढ़ो, जिसका विस्तार आकाशों और धरती जैसा है। वह उन लोगों के लिए तैयार है जो डर रखते है

133 - And approach the forgiveness of your Lord and the Paradise, whose expanse is like the heavens and the earth. He is ready for those who fear



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 134

134 - वे लोग जो ख़ुशहाली और तंगी की प्रत्येक अवस्था में ख़र्च करते रहते है और क्रोध को रोकते है और लोगों को क्षमा करते है - और अल्लाह को भी ऐसे लोग प्रिय है, जो अच्छे से अच्छा कर्म करते है

134 - Those who keep spending in every state of prosperity and hardship and restrain anger and forgive people - and Allah also loves those who do the best of deeds.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 135

135 - और जिनका हाल यह है कि जब वे कोई खुला गुनाह कर बैठते है या अपने आप पर ज़ुल्म करते है तौ तत्काल अल्लाह उन्हें याद आ जाता है और वे अपने गुनाहों की क्षमा चाहने लगते हैं - और अल्लाह के अतिरिक्त कौन है, जो गुनाहों को क्षमा कर सके? और जानते-बूझते वे अपने किए पर अड़े नहीं रहते

135 - And those whose condition is such that when they commit any open sin or wrong themselves, they immediately remember Allah and start asking for forgiveness of their sins - And who is there other than Allah, who forgives the sins ? Can you forgive? And knowingly they do not stick to what they have done



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 136

136 - उनका बदला उनके रब की ओर से क्षमादान है और ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। और क्या ही अच्छा बदला है अच्छे कर्म करनेवालों का.

136 - Their reward is forgiveness from their Lord and gardens beneath which rivers flow. They will remain in them forever. And what a good reward is given to those who do good deeds.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 137

137 - तुमसे पहले (धर्मविरोधियों के साथ अल्लाह की) रीति के कितने ही नमूने गुज़र चुके है, तो तुम धरती में चल-फिरकर देखो कि झुठलानेवालों का परिणाम हुआ है

137 - How many examples of Allah's rule (with the heretics) have passed before you, so travel through the earth and see what has happened to those who deny.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 138

138 - यह लोगों के लिए स्पष्ट बयान और डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और उपदेश है

138 - This is a clear statement for the people, and guidance and advice for those who fear.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 139

139 - हताश न हो और दुखी न हो, यदि तुम ईमानवाले हो, तो तुम्हीं प्रभावी रहोगे

139 - Do not be discouraged and do not be sad, if you are a believer, then only you will be effective.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 140

140 - यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है

140 - If you get hurt, then those people have also got the same hurt. These are the days of war, which We continue to inflict upon the people, and this is so that Allah may know the believers and may take some of you as witnesses - and Allah does not love the oppressor.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 141

141 - और ताकि अल्लाह ईमानवालों को निखार दे और इनकार करनेवालों को मिटा दे

141 - And so that Allah may enhance the believers and destroy the unbelievers



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 142

142 - क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में यूँ ही प्रवेश करोगे, जबकि अल्लाह ने अभी उन्हें परखा ही नहीं जो तुममें जिहाद (सत्य-मार्ग में जानतोड़ कोशिश) करनेवाले है। - और दृढ़तापूर्वक जमें रहनेवाले है

142 - Do you think that you will enter Paradise just like that, when Allah has not yet tested those who will do Jihad (strive to death in the path of truth) among you? - and will remain firmly established



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 143

143 - और तुम तो मृत्यु की कामनाएँ कर रहे थे, जब तक कि वह तुम्हारे सामने नहीं आई थी। लो, अब तो वह तुम्हारे सामने आ गई और तुमने उसे अपनी आँखों से देख लिया

143 - And you were wishing for death, until it appeared before you. Look, now she has come in front of you and you have seen her with your own eyes.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 144

144 - मुहम्मद तो बस एक रसूल है। उनसे पहले भी रसूल गुज़र चुके है। तो क्या यदि उनकी मृत्यु हो जाए या उनकी हत्या कर दी जाए तो तुम उल्टे पाँव फिर जाओगे? जो कोई उल्टे पाँव फिरेगा, वह अल्लाह का कुछ नहीं बिगाडेगा। और कृतज्ञ लोगों को अल्लाह बदला देगा

144 - Muhammad is just a messenger. Rasool has passed before him also. So what if he dies or is murdered will you turn around ? Whoever turns back will do no harm to Allah. And Allah will reward the grateful people



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 145

145 - और अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई व्यक्ति मर नहीं सकता। हर व्यक्ति एक लिखित निश्चित समय का अनुपालन कर रहा है। और जो कोई दुनिया का बदला चाहेगा, उसे हम इस दुनिया में से देंगे, जो आख़िरत का बदला चाहेगा, उसे हम उसमें से देंगे और जो कृतज्ञता दिखलाएँगे, उन्हें तो हम बदला देंगे ही

145 - And no person can die without the permission of Allah. Every person is following a written fixed time. And whoever wants the reward of this world, we will give it to him from this world, whoever wants the reward of the hereafter, we will give it to him from here and whoever shows gratitude, we will definitely give it to him.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 146

146 - कितने ही नबी ऐसे गुज़रे है जिनके साथ होकर बहुत-से ईशभक्तों ने युद्ध किया, तो अल्लाह के मार्ग में जो मुसीबत उन्हें पहुँची उससे वे न तो हताश हुए और न उन्होंने कमज़ोरी दिखाई और न ऐसा हुआ कि वे दबे हो। और अल्लाह दृढ़तापूर्वक जमे रहनेवालों से प्रेम करता है

146 - Many prophets have passed by with whom many devotees of God fought, yet due to the troubles that befell them in the way of Allah, they neither became disheartened nor did they show any weakness, nor did they become overwhelmed. And Allah loves those who stand firm



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 147

147 - उन्होंने कुछ नहीं कहा सिवाय इसके कि "ऐ हमारे रब! तू हमारे गुनाहों को और हमारे अपने मामले में जो ज़्यादती हमसे हो गई हो, उसे क्षमा कर दे और हमारे क़दम जमाए रख, और इनकार करनेवाले लोगों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।

147 - They said nothing except, "Our Lord! Forgive our sins and the wrongs we have done in our affairs, and guide us in our footsteps, and help us against those who disbelieve."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 148

148 - अतः अल्लाह ने उन्हें दुनिया का भी बदला दिया और आख़िरत का अच्छा बदला भी। और सत्कर्मी लोगों से अल्लाह प्रेम करता है

148 - Therefore, Allah gave them a reward in this world as well as a good reward in the hereafter. And Allah loves those who do good.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 149

149 - ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम उन लोगों के कहने पर चलोगे जिन्होंने इनकार का मार्ग अपनाया है, तो वे तुम्हें उल्टे पाँव फेर ले जाएँगे। फिर तुम घाटे में पड़ जाओगे

149 - O you who believe! If you follow the advice of those who have adopted the path of denial, they will turn you back. then you will be in loss



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 150

150 - बल्कि अल्लाह ही तुम्हारा संरक्षक है; और वह सबसे अच्छा सहायक है

150 - Rather, Allah is your protector; And he is the best helper



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 151

151 - हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ो को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनसे साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है। और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है

151 - We will soon cast terror into the hearts of the disbelievers , because they have taken to witness for Allah things for which He has not sent down any scripture, and their abode is the Fire (Hell). And what a miserable place the tyrants have!



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 152

152 - और अल्लाह ने तो तुम्हें अपना वादा सच्चा कर दिखाया, जबकि तुम उसकी अनुज्ञा से उन्हें क़त्ल कर रहे थे। यहाँ तक कि जब तुम स्वयं ढीले पड़ गए और काम में झगड़ा डाल दिया और अवज्ञा की, जबकि अल्लाह ने तुम्हें वह चीज़ दिखा दी थी जिसकी तुम्हें चाह थी। तुममें कुछ लोग दुनिया चाहते थे और कुछ आख़िरत के इच्छुक थे। फिर अल्लाह ने तुम्हें उनके मुक़ाबले से हटा दिया, ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले। फिर भी उसने तुम्हें क्षमा कर दिया, क्योंकि अल्लाह ईमानवालों के लिए बड़ा अनुग्राही है

152 - And Allah kept His promise to you, while you were killing them with His permission. Even when you yourselves became lax and entered into conflict and disobeyed, while Allah had shown you that which you desired. Some of you wanted this world and some wanted the Hereafter. Then Allah removed you from their competition, so that He could test you. Yet He forgave you, for Allah is most gracious to the believers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 153

153 - जब तुम लोग दूर भागे चले जा रहे थे और किसी को मुड़कर देखते तक न थे और रसूल तुम्हें पुकार रहा था, जबकि वह तुम्हारी दूसरी टुकड़ी के साथ था (जो भागी नहीं), तो अल्लाह ने तुम्हें शोक पर शोक दिया, ताकि तुम्हारे हाथ से कोई चीज़ निकल जाए या तुमपर कोई मुसीबत आए तो तुम शोकाकुल न हो। और जो कुछ भी तुम करते हो, अल्लाह उसकी भली-भाँति ख़बर रखता है

153 - When you were running away and did not even look back at anyone and the Messenger was calling to you, while he was with the other group of you (which did not run away), then Allah gave you grief after grief, so that If something slips out of your hands or some trouble befalls you, don't be sad. And whatever you do, Allah is well aware of it.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 154

154 - फिर इस शोक के पश्चात उसने तुमपर एक शान्ति उतारी - एक निद्रा, जो तुममें से कुछ लोगों को घेर रही थी और कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें अपने प्राणों की चिन्ता थी। वे अल्लाह के विषय में ऐसा ख़याल कर रहे थे, जो सत्य के सर्वथा प्रतिकूल, अज्ञान (काल) का ख़याल था। वे कहते थे, "इन मामलों में क्या हमारा भी कुछ अधिकार है?" कह दो, "मामले तो सबके सब अल्लाह के (हाथ में) हैं।" वे जो कुछ अपने दिलों में छिपाए रखते है, तुमपर ज़ाहिर नहीं करते। कहते है, "यदि इस मामले में हमारा भी कुछ अधिकार होता तो हम यहाँ मारे न जाते।" कह दो, "यदि तुम अपने घरों में भी होते, तो भी जिन लोगों का क़त्ल होना तय था, वे निकलकर अपने अन्तिम शयन-स्थलों कर पहुँचकर रहते।" और यह इसलिए भी था कि जो कुछ तुम्हारे सीनों में है, अल्लाह उसे परख ले और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे साफ़ कर दे। और अल्लाह दिलों का हाल भली-भाँति जानता है

154 - Then after this mourning, He sent down upon you a peace - a sleep, which engulfed some of you and there were some who feared for their lives. They were thinking about Allah in such a way, which was completely contrary to the truth, the thought of ignorance. They used to say, " Do we also have any right in these matters?" Say, “All matters are in the hands of Allah.” Whatever they keep hidden in their hearts, they do not reveal it to you. They say, " If we had any say in this matter, we would not have been killed here." Say, " Even if you had been in your homes, those who were destined to be killed would have come out and reached their last resting places." And this was also so that Allah may test whatever is in your breasts and purify whatever is in your hearts. And Allah knows the condition of the hearts very well.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 155

155 - तुममें से जो लोग दोनों गिरोहों की मुठभेड़ के दिन पीठ दिखा गए, उन्हें तो शैतान ही ने उनकी कुछ कमाई (कर्म) का कारण विचलित कर दिया था। और अल्लाह तो उन्हें क्षमा कर चुका है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमा करनेवाला, सहनशील है

155 - Those of you who turned your back on the day of the encounter between the two gangs , it was Satan who had diverted some of their earnings (karma). And Allah has forgiven them. Undoubtedly, Allah is most forgiving and tolerant.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 156

156 - ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इनकार किया और अपने भाईयों के विषय में, जबकि वे सफ़र में गए हों या युद्ध में हो (और उनकी वहाँ मृत्यु हो जाए तो) कहते है, "यदि वे हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल होते।" (ऐसी बातें तो इसलिए होती है) ताकि अल्लाह उनको उनके दिलों में घर करनेवाला पछतावा और सन्ताप बना दे। अल्लाह ही जीवन प्रदान करने और मृत्यु देनेवाला है। और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह अल्लाह की स्पष्ट में है

156 - O you who believe! Do not be like those who disbelieve and say about their brothers while they are on a journey or in battle (and they die there), “If they had been with us, they would not have died nor There would have been murders. (Such things happen) so that Allah makes them dwell in their hearts with remorse and sorrow. Allah is the one who gives life and death. And whatever you do is in the sight of Allah.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 157

157 - और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है

157 - And if you are killed or die in the way of Allah, then Allah's forgiveness and His mercy are better than what they are busy gathering.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 158

158 - हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे

158 - Yes, if you die or are killed, in each case you will be gathered to Allah only.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 159

159 - (तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है

159 - (You forgave them out of your kindness) So it is a great kindness from Allah due to which you have been soft towards them, if you had been cruel by nature and hard-hearted, all these would have gone away from you. So, forgive them and pray for forgiveness for them. Consult them in other matters. Then when your resolutions become firm on a consensus, then trust in Allah. Surely Allah loves those who trust in Him.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 160

160 - यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो कोई तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। और यदि वह तुम्हें छोड़ दे, तो फिर कौन हो जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके। अतः ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए

160 - If Allah helps you, no one can influence you. And if he leaves you, then who will be there who can help you after that. Therefore, believers should trust only in Allah



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 161

161 - यह किसी नबी के लिए सम्भब नहीं कि वह दिल में कीना-कपट रखे, और जो कोई कीना-कपट रखेगा तो वह क़ियामत के दिन अपने द्वेष समेत हाज़िर होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएँगा और उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा

161 - It is not possible for any prophet to harbor grudges in his heart, and whoever harbors grudges will be present on the Day of Judgment along with his malice. And every person will be compensated in full for his earnings and there will be no oppression on them.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 162

162 - भला क्या जो व्यक्ति अल्लाह की इच्छा पर चले वह उस जैसा हो सकता है जो अल्लाह के प्रकोप का भागी हो चुका हो और जिसका ठिकाना जहन्नम है? और वह क्या ही बुरा ठिकाना है

162 - Can a person who follows the will of Allah be like one who has incurred the wrath of Allah and whose abode is hell? And what a bad place it is



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 163

163 - अल्लाह के यहाँ उनके विभिन्न दर्जे है और जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह की स्पष्ट में है

163 - They have different ranks in the sight of Allah and whatever they do is in Allah's sight.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 164

164 - निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों पर बड़ा उपकार किया, जबकि स्वयं उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया जो उन्हें आयतें सुनाता है और उन्हें निखारता है, और उन्हें किताब और हिक़मत (तत्वदर्शिता) का शिक्षा देता है, अन्यथा इससे पहले वे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए थे

164 - Verily, Allah bestowed a great favor upon the believers, when He raised from among them a messenger who recites the revelations to them and refines them, and teaches them the Book and wisdom, otherwise before that they would have been in open error. we’re lying in



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 165

165 - यह क्या कि जब तुम्हें एक मुसीबत पहुँची, जिसकी दोगुनी तुमने पहुँचाए, तो तुम कहने लगे कि, "यह कहाँ से आ गई?" कह दो, "यह तो तुम्हारी अपनी ओर से है, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।

165 - What is it that when a trouble hits you, the double of which you caused, you say, " Where did this come from?" Say, “This is from you, Allah is capable of all things.”



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 166

166 - और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है

166 - And whatever came before you on the day of the encounter between the two groups came by the leave of Allah and so that He may know who is the believer.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 167

167 - और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि "आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।" उन्होंने कहा, "यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।" उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है

167 - And so that he may know the impostors who were told, "Come and fight in the cause of Allah, or expel your enemies. " He said, " If we had known that there would be a fight, we would have definitely joined you." That day they were closer to unrighteousness than faith. They say with their mouth those things which are not in their hearts. And whatever they hide, Allah knows best.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 168

168 - ये वही लोग है जो स्वयं तो बैठे रहे और अपने भाइयों के विषय में कहने लगे, "यदि वे हमारी बात मान लेते तो मारे न जाते।" कह तो, "अच्छा, यदि तुम सच्चे हो, तो अब तुम अपने ऊपर से मृत्यु को टाल देना।

168 - These are the same people who themselves sat and said about their brothers, " If they had listened to us, they would not have been killed." Say, " Well, if you are truthful, then now you avert death from yourself."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 169

169 - तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं

169 - Do not consider as dead those who are killed in the cause of Allah, rather they are alive with their Lord, receiving sustenance.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 170

170 - अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, वे उसपर बहुत प्रसन्न है और उन लोगों के लिए भी ख़ुश हो रहे है जो उनके पीछे रह गए है, अभी उनसे मिले नहीं है कि उन्हें भी न कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे

170 - They are very happy with what Allah has provided them with His bounty and are also happy for those who are left behind them, who have not yet met them that they too will have no fear and nor will they be sad



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 171

171 - वे अल्लाह के अनुग्रह और उसकी उदार कृपा से प्रसन्न हो रहे है और इससे कि अल्लाह ईमानवालों का बदला नष्ट नहीं करता

171 - They are pleased by Allah's grace and His bountiful bounty and that Allah does not withhold the reward of the believers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 172

172 - जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार किया, इसके पश्चात कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। इन सत्कर्मी और (अल्लाह का) डर रखनेवालों के लिए बड़ा प्रतिदान है

172 - Those who accepted the call of Allah and the Messenger after they had been struck. There is a great reward for those who do good and fear (Allah).



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 173

173 - ये वही लोग है जिनसे लोगों ने कहा, "तुम्हारे विरुद्ध लोग इकट्ठा हो गए है, अतः उनसे डरो।" तो इस चीज़ ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया। और उन्होंने कहा, "हमारे लिए तो बस अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा कार्य-साधक है।

173 - These are the same people to whom the people said, " People have gathered against you, so fear them." So this thing further increased his faith. And they said, “Allah is sufficient for us and He is the best doer.”



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 174

174 - तो वे अल्लाह को ओर से प्राप्त होनेवाली नेमत और उदार कृपा के साथ लौटे। उन्हें कोई तकलीफ़ छू भी नहीं सकी और वे अल्लाह की इच्छा पर चले भी, और अल्लाह बड़ी ही उदार कृपावाला है

174 - Then they returned with blessings and bounty from Allah. No trouble could touch them and they followed the will of Allah, and Allah is very generous.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 175

175 - वह तो शैतान है जो अपने मित्रों को डराता है। अतः तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझी से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो

175 - He is the devil who frightens his friends. So do not fear them, but fear Me, if you are believers.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 176

176 - जो लोग अधर्म और इनकार में जल्दी दिखाते है, उनके कारण तुम दुखी न हो। वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। अल्लाह चाहता है कि उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा न रखे, उनके लिए तो बड़ी यातना है

176 - Do not be sad because of those who show haste in unrighteousness and denial. They cannot do any harm to Allah. Allah wishes that they should not have any share in the Hereafter, for them is a terrible punishment.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 177

177 - जो लोग ईमान की क़ीमत पर इनकार और अधर्म के ग्राहक हुए, वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, उनके लिए तो दुखद यातना है

177 - Those who indulge in disbelief and unrighteousness at the cost of faith cannot harm Allah in any way, for them is a painful punishment.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 178

178 - और यह ढ़ील जो हम उन्हें दिए जाते है, इसे अधर्मी लोग अपने लिए अच्छा न समझे। यह ढील तो हम उन्हें सिर्फ़ इसलिए दे रहे है कि वे गुनाहों में और अधिक बढ़ जाएँ, और उनके लिए तो अत्यन्त अपमानजनक यातना है

178 - And the unrighteous people should not consider this leniency which We give them as good for themselves. We are giving them this respite only so that they may increase in sins, and for them is a most humiliating punishment.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 179

179 - अल्लाह ईमानवालों को इस दशा में नहीं रहने देगा, जिसमें तुम हो। यह तो उस समय तक की बात है जबतक कि वह अपवित्र को पवित्र से पृथक नहीं कर देता। और अल्लाह ऐसा नहीं है कि वह तुम्हें परोक्ष की सूचना दे दे। किन्तु अल्लाह इस काम के लिए जिसको चाहता है चुन लेता है, और वे उसके रसूल होते है। अतः अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ। और यदि तुम ईमान लाओगे और (अल्लाह का) डर रखोगे तो तुमको बड़ा प्रतिदान मिलेगा

179 - Allah will not allow the believers to remain in the condition you are in. This is a matter of time until he separates the profane from the holy. And Allah does not give you information about the unseen. But Allah chooses whomever He wants for this work , and they are His messengers. So believe in Allah and His Messenger. And if you believe and fear (Allah), you will have a great reward.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 180

180 - जो लोग उस चीज़ में कृपणता से काम लेते है, जो अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से उन्हें प्रदान की है, वे यह न समझे कि यह उनके हित में अच्छा है, बल्कि यह उनके लिए बुरा है। जिस चीज़ में उन्होंने कृपणता से काम लिया होगा, वही आगे कियामत के दिन उनके गले का तौक़ बन जाएगा। और ये आकाश और धरती अंत में अल्लाह ही के लिए रह जाएँगे। तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है

180 - Those who are miserly about what Allah has bestowed upon them by His bounty , do not think that it is good for them , rather it is bad for them. The things in which they have been miserly will become a thorn in their neck on the day of judgement . And this heaven and earth will ultimately belong to Allah alone. Whatever you do, Allah is aware of it.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 181

181 - अल्लाह उन लोगों की बात सुन चुका है जिनका कहना है कि "अल्लाह तो निर्धन है और हम धनवान है।" उनकी बात हम लिख लेंगे और नबियों को जो वे नाहक क़त्ल करते रहे है उसे भी। और हम कहेंगे, "लो, (अब) जलने की यातना का मज़ा चखो।

181 - Allah has heard those who say, "Allah is poor and we are rich." We will write down what they say and also the unjust killing of the prophets. And We will say, “Take a taste of the punishment of burning.”



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 182

182 - यह उसका बदला है जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजा। अल्लाह अपने बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म नहीं करता

182 - This is the retribution for what your hands sent forward. Allah does not do any injustice to his servants.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 183

183 - ये वही लोग है जिनका कहना है कि अल्लाह ने हमें ताकीद की है कि हम किसी रसूल पर ईमान न लाएँ, जबतक कि वह हमारे सामने ऐसी क़ुरबानी न पेश करे जिसे आग खा जाए। कहो, तुम्हारे पास मुझसे पहले कितने ही रसूल खुली निशानियाँ लेकर आ चुके है, और वे वह चीज़ भी लाए थे जिसके लिए तुम कह रहे हो। फिर यदि तुम सच्चे हो तो तुमने उन्हें क़त्ल क्यों किया?

183 - These are the people who say, "Allah has commanded us not to believe in any messenger unless he brings us a sacrifice that the fire can consume." Say, " Many messengers have come to you before me with clear signs, and they also brought what you are asking about. Then why did you kill them if you are truthful?"



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 184

184 - फिर यदि वे तुम्हें झुठलाते ही रहें, तो तुमसे पहले भी कितने ही रसूल झुठलाए जा चुके है, जो खुली निशानियाँ, 'ज़बूरें' और प्रकाशमान किताब लेकर आए थे

184 - Then if they continue to deny you, then how many messengers have been denied before you, who came with clear signs, 'psalms' and illuminated books.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 185

185 - प्रत्येक जीव मृत्यु का मज़ा चखनेवाला है, और तुम्हें तो क़ियामत के दिन पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएगा। अतः जिसे आग (जहन्नम) से हटाकर जन्नत में दाख़िल कर दिया गया, वह सफल रहा। रहा सांसारिक जीवन, तो वह माया-सामग्री के सिवा कुछ भी नहीं

185 - Every living being is going to taste death, and you will be fully compensated on the Day of Judgment. Therefore, the one who was removed from the fire (Hell) and entered into Paradise, he was successful. As for worldly life, it is nothing but an illusion.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 186

186 - तुम्हारें माल और तुम्हारे प्राण में तुम्हारी परीक्षा होकर रहेगी और तुम्हें उन लोगों से जिन्हें तुमसे पहले किताब प्रदान की गई थी और उन लोगों से जिन्होंने 'शिर्क' किया, बहुत-सी कष्टप्रद बातें सुननी पड़ेगी। परन्तु यदि तुम जमें रहे और (अल्लाह का) डर रखा, तो यह उन कर्मों में से है जो आवश्यक ठहरा दिया गया है

186 - You will be tested in your wealth and in your lives, and you will have to hear many painful words from those who were given the Book before you and from those who committed shirk . But if you remain steadfast and fear (Allah), So this is among those deeds which have been made necessary



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 187

187 - याद करो जब अल्लाह ने उन लोगों से, जिन्हें किताब प्रदान की गई थी, वचन लिया था कि "उसे लोगों के सामने भली-भाँति स्पट् करोगे, उसे छिपाओगे नहीं।" किन्तु उन्होंने उसे पीठ पीछे डाल दिया और तुच्छ मूल्य पर उसका सौदा किया। कितना बुरा सौदा है जो ये कर रहे है

187 - Remember when Allah made a promise to those who were given the Book: "You will make it clear to the people, and you will not hide it." But they put it behind their back and traded it at a pittance. what a bad deal they are making



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 188

188 - तुम उन्हें कदापि यह न समझना, जो अपने किए पर ख़ुश हो रहे है और जो काम उन्होंने नहीं किए, चाहते है कि उनपर भी उनकी प्रशंसा की जाए - तो तुम उन्हें यह न समझाना कि वे यातना से बच जाएँगे, उनके लिए तो दुखद यातना है

188 - You should never understand those who are happy about what they have done and want to be praised for what they have not done - so do not explain to them that they will be saved from the punishment, for their sake. sad torture



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 189

189 - आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है, और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

189 - The kingdom of the heavens and the earth belongs to Allah, and Allah has the power over all things.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 190

190 - निस्सदेह आकाशों और धरती की रचना में और रात और दिन के आगे पीछे बारी-बारी आने में उन बुद्धिमानों के लिए निशानियाँ है

190 - Surely in the creation of the heavens and the earth and in the alternation of night and day there are signs for the wise.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 191

191 - जो खड़े, बैठे और अपने पहलुओं पर लेटे अल्लाह को याद करते है और आकाशों और धरती की रचना में सोच-विचार करते है। (वे पुकार उठते है,) "हमारे रब! तूने यह सब व्यर्थ नहीं बनाया है। महान है तू, अतः हमें आग की यातना से बचा ले

191 - Those who remember Allah while standing , sitting and lying on their sides and contemplate the creation of the heavens and the earth. (They cry out,) " Our Lord! You have not created all this in vain. Great are You, so save us from the punishment of the Fire."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 192

192 - हमारे रब, तूने जिसे आग में डाला, उसे रुसवा कर दिया। और ऐसे ज़ालिमों का कोई सहायक न होगा

192 - " Our Lord, whoever you threw into the Fire, you have disgraced him. And such wrongdoers will have no helper.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 193

193 - "हमारे रब! हमने एक पुकारनेवाले को ईमान की ओर बुलाते सुना कि अपने रब पर ईमान लाओ। तो हम ईमान ले आए। हमारे रब! तो अब तू हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमारी बुराइयों को हमसे दूर कर दे और हमें नेक और वफ़़ादार लोगों के साथ (दुनिया से) उठा

193 - "Our Lord! We heard a caller calling to faith, 'Believe in your Lord.' So we believed. Our Lord! So now forgive us our sins and remove from us our evils and give us Risen (from the world) with the righteous and the faithful



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 194

194 - "हमारे रब! जिस चीज़ का वादा तूने अपने रसूलों के द्वारा किया वह हमें प्रदान कर और क़ियामत के दिन हमें रुसवा न करना। निस्संदेह तू अपने वादे के विरुद्ध जानेवाला नहीं है।"

194 - "Our Lord! Give us what You promised through Your messengers, and do not disgrace us on the Day of Judgment. Surely, you do not go against Your promise."



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 195

195 - तो उनके रब ने उनकी पुकार सुन ली कि "मैं तुममें से किसी कर्म करनेवाले के कर्म को अकारथ नहीं करूँगा, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। तुम सब आपस में एक-दूसरे से हो। अतः जिन लोगों ने (अल्लाह के मार्ग में) घरबार छोड़ा और अपने घरों से निकाले गए और मेरे मार्ग में सताए गए, और लड़े और मारे गए, मैं उनसे उनकी बुराइयाँ दूर कर दूँगा और उन्हें ऐसे बाग़ों में प्रवेश कराऊँगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी।" यह अल्लाह के पास से उनका बदला होगा और सबसे अच्छा बदला अल्लाह ही के पास है

195 - Then their Lord heard their call, "I will not make void the work of any doer among you, whether he is male or female. You are all one for another. So those who I) those who left their homes and were driven from their homes and were persecuted in My path, and fought and were killed, I will remove from them their evils and will admit them into Gardens beneath which rivers flow." This will be their reward from Allah and the best reward is from Allah alone.




अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 196

196 - बस्तियों में इनकार करनेवालों की चलत-फिरत तुम्हें किसी धोखे में न डाले

196 - Do not let the behavior of those who disbelieve in the settlements mislead you.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 197

197 - यह तो थोड़ी सुख-सामग्री है फिर तो उनका ठिकाना जहन्नम है, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है

197 - This is a little happiness, then their abode is hell, and it is a very bad abode.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 198

198 - किन्तु जो लोग अपने रब से डरते रहे उनके लिए ऐसे बाग़ होंगे जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वे उसमें सदैव रहेंगे। यह अल्लाह की ओर से पहला आतिथ्य-सत्कार होगा और जो कुछ अल्लाह के पास है वह नेक और वफ़ादार लोगों के लिए सबसे अच्छा है

198 - But for those who fear their Lord, there will be gardens beneath which rivers flow. They will remain there forever. This will be the first hospitality from Allah and what Allah has is the best for the righteous and the faithful.



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 199

199 - और किताबवालों में से कुछ ऐसे भी है, जो इस हाल में कि उनके दिल अल्लाह के आगे झुके हुए होते है, अल्लाह पर ईमान रखते है और उस चीज़ पर भी जो तुम्हारी ओर उतारी गई है, और उस चीज़ पर भी जो स्वयं उनकी ओर उतरी। वे अल्लाह की आयतों का 'तुच्छ मूल्य पर सौदा' नहीं करते, उनके लिए उनके रब के पास उनका प्रतिदान है। अल्लाह हिसाब भी जल्द ही कर देगा

199 - And among the People of the Book are some who believe in Allah, and in what has been sent down to you, and in what has been revealed to you, while their hearts are submissive to Allah. Descended towards them. They do not 'trade in' the revelations of Allah, for they have their reward with their Lord. Allah will settle the score soon



अल-ए-इमरान (Ali-Imran) 200

200 - ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य से काम लो और (मुक़ाबले में) बढ़-चढ़कर धैर्य दिखाओ और जुटे और डटे रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम सफल हो सको

200 - O you who believe! Be patient and show great patience (in competition) and remain united and steadfast and fear Allah, so that you may succeed.



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